सोमनाथ बोले स्थानीय नेता और हाटी समिति कर रही है भ्रामक बातें
HNN/कालाअंब
गुर्जर समाज ने कालाअंब में मीटिंग कर हाटी समुदाय को दिए आरक्षण के मुद्दे को लेकर आगामी रणनीति तैयार की और अपनी नाराज़गी जताई है। गिरिपार के हाटी समुदाय को दिया एसटी आरक्षण सही नहीं है और इसमें बहुत सारी वैधानिक और न्यायिक खामियाँ है। जिसको लेकर राज्य सरकार के स्पष्टिकरण मांगने का फैसला सही है।
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इस मामले को लेकर हम केंद्र सरकार से भी गुहार लगाते है कि सरकार तथ्यों के आधार पर इस फैसले पर पुनर्विचार करे। पिछले कुछ दिनों मे केंद्रीय हाटी समिति और स्थानीय नेता भ्रामक बातें कर रहे है और हाटी समुदाय के अस्तित्व को लेकर कोई ठोस दलील नहीं दे पाए और अब मनुस्मृति और खश इतिहास के आधार पर हाटी समुदाय के होने का दावा कर रहे है। परंतु यह जवाब नहीं दे पा राहे कि गिरिपार के खश कनैत और राजपूत बाकी प्रदेश से अलग कैसे है।
यही नहीं राजस्व रिकॉर्ड को बदलने की बात की जा रही है जो कि निराधार और न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ है। रेवेन्यू रिकॉर्ड और भारत के रजिस्ट्रार जनरल की पहले की टिप्पणी जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया कि हाटी कोई समुदाय नहीं है और वास्तविकत परिस्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि हाटी नामक कोई समुदाय या जाति नहीं है।
हाटी नाम के किसी समुदाय का कोई ऐतिहासिक, सामाजिक अस्तित्व नहीं है तो फिर उन्हे जनजाति कैसे घोषित किया जा सकता है। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह आरक्षण की व्यवस्था मे सवर्ण जातियों के आर्थिक और सामाजिक तौर पर विकसित लोगों की बैकडोर एंट्री है।
लोकुर कमेटी के मापदंडों को तथाकथित हाटी समुदाय पूरा नहीं करता और मापदंडों को दरकिनार कर राजनीतिक लाभ के लिये उन्हे एसटी बनाया जा रहा है। हम केंद्र और राज्य सरकार से विनती करते है कि हिमाचल की जनजातियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए हाटी आरक्षण से जुड़े इस पहलू पर गौर कर पुनर्विचार किया जाये।
इस दौरान उन्होंने अपनी मांगें भी बताई। उन्होंने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड मे कोई बदलाव नहीं किया जाए। टीआरटीआई की रिपोर्ट (एथनोग्राफिक् डाटा) मे मौजूद खामियों को पुनः अवलोकन किया जाए और उसमे जो काल्पनिक बातें लिखी गयी है उन्हे हटा कर वास्तविक् तथ्यों के आधार रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
उन्होंने कहा कि गिरिपार के क्षेत्र और तथाकथित हाटी समुदाय के पिछड़ेपन का कोई आंकडा न तो टीआरटीआई की रिपोर्ट मे है और ना ही राज्य सरकार की सिफारिश मे है। सरकार पिछड़ेपन को मापने के लिए सेवनिर्वित हाई कोर्ट जज के नेत्रत्व मे विशेष कमिशन या कमेटी स्थापित कर वास्तविक स्तिथि के आधार पर रिपोर्ट पेश करे।
साथ ही कहा कि एसटी के वर्तमान कोटे मे कोई छेड़छाड़ नहीं की जाए और वर्तमान के प्रतिशत को यथागत रख इस श्रेणी से बाहर आरक्षण दिया जाए। उन्होंने कहा कि सवर्ण और रसुखदार जातियों को घुमंतू जनजातियों के साथ एक ही श्रेणि मे न रखा जाए। बराबरी के अधिकार और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है और इससे अनुसूचित जनजाति के संसाधनों और अवसरों पर विपरीत असर पड़ेगा और उन्हे फिर से पिछड़ेपन की तरफ़ धकेलेगा।
उन्होंने कहा कि एससी/एसटी अधिनियम 1989 निष्क्रिय होने को लेकर पहले न्यायिक प्रक्रिया चल रही है जो इस मामले मे हुई सम्यक् तत्परता की कमी और पुनर्विचार की जरूरत को दर्शाता है।
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