नाहन
हिमाचल प्रदेश सरकार भले ही इन्वेस्टर मीट के माध्यम से उद्योगों को आकर्षित करने का दावा करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। विशेष रूप से सिरमौर जिले में, जिसका प्रतिनिधित्व स्वयं उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान करते हैं, औद्योगिक विकास और नए निवेश के मामले में निराशाजनक तस्वीर सामने आई है।
जिले के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र काला अंब और पांवटा साहिब में पहले से स्थापित उद्योगों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं देने में सरकार विफल रही है, वहीं लगभग 1200 बीघा के प्रस्तावित लैंड बैंक पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है,
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जिससे नए उद्योगों को ज़मीन उपलब्ध कराने की योजना खटाई में पड़ गई है।जिला उद्योग केंद्र से सेवानिवृत्त एक काबिल महाप्रबंधक द्वारा कुशलतापूर्वक तैयार की गई लगभग 1200 बीघा की लैंड बैंक की रूपरेखा, उनके सेवानिवृत्त होते ही लगभग ठप्प पड़ गई है।
उद्योग विभाग द्वारा प्रस्तुत लैंड बैंक के चार महत्वपूर्ण प्रस्ताव जटिल औपचारिकताओं में उलझे हुए हैं।
चार प्रमुख प्रस्तावों की स्थिति चिंताजनक
विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इन चार औद्योगिक क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति लैंड बैंक की धीमी गति और विभाग की लचर कार्यप्रणाली को दर्शाती है।
मौजा गब्बर (कमराऊ) में बाधा:
यहां पहचान की गई 12.58 हेक्टेयर (149-06 बीघा) भूमि के लिए वन संरक्षण अधिनियम (FCA) का मामला तैयार हो रहा है, लेकिन ‘परिवेश पोर्टल’ पर उठाई गई आपत्तियों को हटाने का काम बेहद धीमी गति से चल रहा है।
मौजा पट्टी नाथा सिंह (पांवटा साहिब) में सुस्त गति:
इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में भूमि की पहचान के बाद संयुक्त निरीक्षण भी हो चुका है और FCA मामला तैयार किया जा रहा है, किंतु कार्यवाही की गति संतोषजनक नहीं है।
गिन्नी-घाट क्षेत्र (पच्छाद) उपायुक्त के पास लंबित:
पच्छाद तहसील के गिन्नी-घड़ क्षेत्र में 91-03 बीघा भूमि उद्योगों के लिए उपयुक्त पाई गई थी, लेकिन यह मामला अभी भी उपायुक्त सिरमौर के पास राजस्व विभाग से वन भूमि से संबंधित स्पष्टीकरण के इंतजार में लंबित है।
जोहडों, काला अंब प्रस्ताव अधर में:
सिरमौर के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र के पास 850 बीघा में से लगभग 700 बीघा भूमि को उपयुक्त पाया गया था, बावजूद इसके, यह मामला अधर में है क्योंकि उद्योग निदेशक, हिमाचल प्रदेश ने कुछ दस्तावेज़ों और प्रस्ताव में सुधार की मांग की है, जिन्हें पूरा करने का काम अभी चल रहा है।
उद्योग मंत्री के गृह जिले पर सवाल
भाग्य की विडंबना यह है कि एक ओर सरकार इन्वेस्टर मीट के सहारे देश-विदेश के निवेशकों को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान के गृह जिले में ही ज़मीन अधिग्रहण जैसे मूलभूत कार्य पिछले दो साल में ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं।
लैंड बैंक के ऊपर बहुत सी औपचारिकताएं ऐसी हैं जिन्हें सरलता से पूरा किया जा सकता था, मगर अब सरकार के कार्यकाल के भी मात्र दो साल ही बचे हैं।
ऐसे में औद्योगिक विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवालिया निशान खड़े हो जाते हैं कि क्या सरकार कार्यकाल खत्म होने से पहले सिरमौर को एक भी बड़ा नया उद्योग या बेहतर औद्योगिक बुनियादी ढांचा दे पाएगी।
जबकि सरकार की नीतियों और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उद्योगपति काफी ज्यादा दबाव और तनाव में है यहां तक की बहुत से उद्योग अब पलायन की स्थिति पर भी पहुंच रहे हैं।
विभाग का पक्ष
उधर जीएम इंडस्ट्री विभाग जिला सिरमौर रचित शर्मा का कहना है कि लगभग 1200 बीघा जमीन की प्रपोज फॉरेस्ट क्लीयरेंस आदि की वजह से लंबित है। उन्होंने कहा कि विभाग लगातार इस पर रिमाइंडर भी दे रही है। फिलहाल किसी भी जमीन परमिशन नहीं आई है।
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