Himachalnow / कांगड़ा
महिलाओं की पहल से बदल रही समाज की सेहत
धर्मशाला। आमतौर पर माना जाता है कि परिवार के खान-पान और सेहत का सबसे अधिक ध्यान घर की महिलाएं रखती हैं। मां, गृहणी या बेटियां यह सुनिश्चित करती हैं कि परिवार स्वस्थ खाए और स्वच्छ वातावरण में रहे। इसी स्वभाव के चलते, जिला कांगड़ा की कुछ मेहनतकश महिलाओं ने समाज को भी स्वस्थ रखने का बीड़ा उठाया है।
धर्मशाला की लक्ष्मी देवी, बैजनाथ की परवीन कुमारी और पद्दर की आशा देवी ने अपने प्रयासों से न केवल समाज की सेहत में योगदान दिया है, बल्कि आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बनकर अन्य महिलाओं को प्रेरित किया है।
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मोटे अनाज से आत्मनिर्भरता की राह
धर्मशाला की रहने वाली लक्ष्मी देवी किसान परिवार से आती हैं, जहां आजीविका मुख्यतः कृषि पर निर्भर थी। परिवार की स्थिति सुधारने की चाह में उन्होंने आकांक्षा स्वयं सहायता समूह से जुड़कर व्यावसायिक कौशल सीखे।
वे बताती हैं कि जब उन्होंने सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों के बढ़ते प्रभाव को देखा, तो उनके स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों पर विचार किया। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत, उन्होंने रागी और सूजी के मोमोज बनाने का प्रशिक्षण लिया। इन हेल्दी मोमोज को न केवल अच्छा बाजार मिला, बल्कि लोगों ने इन्हें एक बेहतर विकल्प के रूप में अपनाया।
लक्ष्मी देवी ने जिला प्रशासन की मदद से ‘हिम इरा’ शॉप का संचालन भी शुरू किया, जहां वे अपने और अन्य स्वयं सहायता समूहों के उत्पाद बेच रही हैं। सरकारी योजनाओं और प्रशासनिक सहयोग से वे आज आत्मनिर्भर बन चुकी हैं और आर्थिक रूप से मजबूत हो गई हैं।
पारंपरिक कृषि से आगे बढ़कर मोटे अनाज का उत्पादन
बैजनाथ की परवीन कुमारी भी कृषक परिवार से हैं, जहां पारंपरिक खेती से आय के सीमित साधन थे। उन्होंने वैभव लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़कर बाजरा, रागी, ज्वार जैसे मोटे अनाज की खेती शुरू की।
इसके साथ ही, उन्हें पौष्टिक कृषि उत्पादों पर काम करने का प्रशिक्षण और विपणन संबंधी सहायता भी मिली। अब वे हर महीने 18 से 20 हजार रुपये कमा रही हैं और अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दे रही हैं।
तुलसी उत्पादों से आरोग्य और आर्थिक स्वावलंबन
अभिलाषा स्वयं सहायता समूह की सदस्य पद्दर की आशा देवी ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत तुलसी उत्पादों का व्यवसाय शुरू किया। वे तुलसी अर्क, तुलसी चाय और तुलसी साबुन जैसे उत्पाद बनाकर अपनी पहचान बना रही हैं।
उन्होंने बैंक लोन लेकर आवश्यक मशीनें खरीदीं, जिससे उनका काम और व्यवस्थित हो गया। अब वे हर महीने 15 से 20 हजार रुपये कमा रही हैं और समाज की सेहत का भी ध्यान रख रही हैं। उनके उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है और वे पूरी तरह आत्मनिर्भर बन चुकी हैं।
महिलाओं के लिए ब्रांडिंग और विपणन के नए अवसर
उपायुक्त हेमराज बैरवा ने बताया कि स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को बेहतर प्रशिक्षण के साथ उनके उत्पादों की ब्रांडिंग और विपणन के लिए कारगर कदम उठाए जा रहे हैं।
धर्मशाला में जिला परिषद कार्यालय के बाहर ‘हिम ईरा’ शॉप खोली गई है, जहां महिलाओं को अपने उत्पाद बेचने की सुविधा दी जा रही है। भविष्य में जिले भर में और भी हिम ईरा शॉप्स खोली जाएंगी।
इसके अलावा, उत्पादों की पैकेजिंग को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि बाजार में इनकी मांग बढ़ सके। स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को ऑनलाइन बेचने के लिए ‘हिम ईरा’ की वेबसाइट तैयार की गई है और सभी समूहों को इससे जोड़ा जा रहा है, जिससे वे डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से अपने उत्पाद बेच सकें।
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