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सिरमौर से किसान सभा में शामिल किए जाएंगे साढ़े सात हजार नए सदस्य

SAPNA THAKUR | 9 दिसंबर 2021 at 6:22 pm

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HNN/ नाहन

सिरमौर जिला में किसान सभा के विस्तार के लिए सदस्यता अभियान आरंभ किया जाएगा। प्रथम चरण में जिला में साढ़े सात हजार नए सदस्यों को किसान सभा में शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है। यह बात प्रदेश किसान सभा के राज्याध्यक्ष डाॅ. कुलदीप तंवर ने नाहन में किसान सभा के पदाधिकारियों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए कही। डाॅ. तंवर ने बताया कि सिरमौर में तीन प्रमुख फसलों टमाटर, लसुहन और अदरक की सर्वाधिक पैदावार होती है परंतु सरकार द्वारा सिरमौर के किसानों के हितों के लिए आजतक कोई कारगर पग नहीं उठाए गए हैं।

जबकि सिरमौर में इन तीन फसलों पर आधारित प्रोसेंसिंग प्लांट और सीए स्टोर की बहुत आवश्यकता है। डाॅ. तंवर ने बताया कि इस बार किसानों का लसुहन न्यूनतम 35 रूपये और टमाटर की क्रेट 90 रू बिकी जिससे किसानों को लागत भी नहीं मिल पाई है। बताया कि बेचड़ का बाग में बीते दिनों पुराना अदरक 3 रूपये 25 पैसे प्रतिकिलोग्राम बिका। उचित दाम न मिलने की स्थिति में किसानों की स्थिति इस वर्ष काफी दयनीय है।

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डाॅ. तंवर ने बताया कि सिरमौर में तीन अनाज मंडियां कार्यरत है जिनमें किसानों की समस्याओं को देखते हुए सीए स्टोर इत्यादि सुविधाओं का सृजन किया जाना चाहिए। बताया कि सिरमौर के निचले क्षेत्रों में धान व गेंहूं तथा उपरी क्षेत्रों में टमाटर, लहसुन व अदरक का काफी मात्रा में उत्पादन किया जाता है। खेद का विषय है कि इस बार पांवटा क्षेत्र के किसानों को धान की फसल को हरियाणा में कम दाम पर बेचना पड़ा।

उन्होने बताया कि राष्ट्रीय स्तर की संयुक्त किसान सभा द्वारा 23 फसलों को शामिल किया गया है जिसमें सात अनाज, सात दलहन और चार अन्य गन्ना जूट इत्यादि शामिल है परंतु इसमें टमाटर, लसुहन व अदरक शामिल नहीं है। उन्होने बताया कि केरल की सरकार ने 16 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है। हिमाचल प्रदेश सरकार को भी केरल राज्य के अध्ययन करने के लिए अधिकारियों की टीम को भेजना चाहिए।

केरल राज्य की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में उत्पादित होने वाली फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत लाना चाहिए ताकि किसानों की आर्थिकी में सुधार हो सके। डाॅ. तंवर ने जानकारी दी कि हिमाचल में 20 लाख मिट्रिक टन सब्जियों, 16 लाख मिट्रिक टन अनाज और 10 लाख मिट्रिक टन फलोत्पादन होता है। सबसे अहम बात यह है कि किसानों को अपने उत्पादों को बेचने के लिए बहुत परेशानी पेश आ रही है और न्यूनतम समर्थन मूल्य न होने पर कई बार औने-पौने दाम पर उत्पाद बेचने को मजबूर होना पड़ता है।

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