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मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना से बिखरे सपनों को मिल रही नई उड़ान, ऊना के रंजीत को मिला पक्का घर

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माता-पिता के असमय निधन से टूटा सपना अब मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना से साकार हो रहा है। ऊना के रंजीत और उनके भाई-बहनों को सरकार की मदद से मिला नया आश्रय और भविष्य की उम्मीद।

ऊना/वीरेंद्र बन्याल

योजना के तहत मिली आर्थिक सहायता से शुरू हुआ नया जीवन

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एक कमरे में रहने वाले परिवार को मिला दो कमरों का पक्का घर

ऊना जिले के नंगल खुर्द गांव निवासी 21 वर्षीय रंजीत सिंह के लिए पक्का घर कभी एक अधूरी कल्पना थी। माता-पिता के निधन के बाद छह भाई-बहनों का यह परिवार सिर्फ एक कमरे में गुजर-बसर कर रहा था। दिहाड़ी मजदूरी कर जैसे-तैसे जीवन चला रहे रंजीत को जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना की जानकारी मिली, तब उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। योजना के अंतर्गत उन्हें 5 मरले भूमि और गृह निर्माण के लिए पहली किश्त के रूप में 1 लाख रुपये की सहायता मिली, जिससे दो कमरों, लॉबी और शौचालय वाला पक्का घर बनना शुरू हो गया।

समाज कल्याण के साथ मिला आत्मनिर्भरता का रास्ता

रंजीत की बहन इस योजना के तहत सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण ले रही है और तीन भाई-बहनों को प्रतिमाह चार हजार रुपये की सामाजिक सुरक्षा सहायता मिल रही है। रंजीत का कहना है कि सरकार ने केवल आर्थिक सहयोग नहीं किया, बल्कि माता-पिता की भूमिका निभाते हुए उन्हें सम्मानजनक जीवन दिया है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के प्रति उनका आभार अपार है, जिन्होंने इस योजना को जन कल्याण का माध्यम बनाया।

जिले में 18 बच्चों को मिल चुकी है गृह निर्माण सहायता

आईसीडीएस के जिला कार्यक्रम अधिकारी नरेंद्र कुमार ने बताया कि अब तक जिले में 18 बच्चों को पहली किस्त के रूप में गृह निर्माण हेतु एक-एक लाख रुपये की राशि वितरित की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त 294 बच्चों को सामाजिक सुरक्षा और स्वावलंबन गतिविधियों के लिए कुल 3.11 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता दी जा चुकी है।

राज्य बना अभिभावक, योजना में हुआ विस्तार

मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने स्पष्ट किया है कि जिन बच्चों के माता-पिता नहीं हैं, उनके लिए सरकार ही अभिभावक है। योजना के अंतर्गत बच्चों को न केवल आवास और आर्थिक सहयोग दिया जाता है, बल्कि शिक्षा, कोचिंग, भोजन, वस्त्र, भत्ता, पॉकेट मनी और यहां तक कि विवाह की सुविधा भी प्रदान की जाती है। राज्य सरकार ने ऐसे बच्चों को ‘चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट’ का दर्जा देने वाला कानून भी पारित किया है, जिससे हिमाचल इस दिशा में देश का पहला राज्य बना है।

ट्रांसजेंडर, परित्यक्त बच्चे और एकल नारियों को भी मिला योजना में स्थान

जिला बाल संरक्षण अधिकारी कमलदीप ने बताया कि योजना का दायरा बढ़ाते हुए अब ट्रांसजेंडर, परित्यक्त बच्चे और एकल नारियों को भी इसमें शामिल किया गया है। एकल नारियों को हर महीने 2500 रुपये की सामाजिक सुरक्षा सहायता दी जा रही है। उपायुक्त ऊना जतिन लाल ने कहा कि प्रशासन मुख्यमंत्री की कल्याणकारी सोच को जमीन पर उतारने के लिए संकल्पित है और हर पात्र लाभार्थी को समय पर सहायता पहुंचाई जा रही है।

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