केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन लागू, वित्तीय पारदर्शिता बढ़ाने के लिए फैसला; हिमाचल सरकार तैयारी में
हिमाचल नाऊ न्यूज़ शिमला:
पंचायत चुनावों के बीच प्रदेश के प्रधानों को एक बड़ा झटका लगा है। अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत पंचायतों को मिलने वाले करोड़ों रुपये के बजट को खर्च करने का अधिकार प्रधानों के हाथ से निकलने वाला है।
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केंद्र सरकार ने मनरेगा के लिए नई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अब मनरेगा के तहत सामान की खरीद-फरोख्त प्रधान स्वयं नहीं कर पाएंगे।
केंद्रीय योजना के तहत अन्य विकास कार्यों के लिए टेंडर और अन्य औपचारिकताओं की जिम्मेदारी भी अब खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) निभाएंगे। केंद्र सरकार द्वारा जारी इस नई गाइडलाइन को हिमाचल प्रदेश में लागू करने की तैयारी शुरू हो गई है।
इसके लागू होने के बाद पंचायतों को मनरेगा के तहत आवंटित होने वाले करोड़ों रुपये के बजट पर बीडीओ का नियंत्रण होगा। बीडीओ स्तर से ही पंचायतों को मनरेगा का बजट आवंटित किया जाएगा और टेंडर से लेकर अन्य सभी औपचारिकताएं भी बीडीओ ही पूरी करेंगे।
जानकारी के अनुसार, पंचायती एवं ग्रामीण विकास विभाग ने इस संबंध में एक प्रस्ताव सरकार को भेज दिया है।केंद्र के वित्त विभाग ने सामान्य वित्तीय नियम (जेएफआर) के तहत इन नियमों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं।
यदि हिमाचल प्रदेश में केंद्र के जेएफआर नियमों का पालन नहीं किया जाता है, तो मनरेगा और अन्य केंद्रीय योजनाओं के तहत पंचायतों को मिलने वाले बजट पर रोक लग सकती है। केंद्र सरकार की इस सख्त गाइडलाइन के बाद पंचायती एवं ग्रामीण विकास विभाग ने नए नियमों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और सरकार की मंजूरी के लिए विभागीय स्तर पर प्रस्ताव भेजा गया है।
सूत्रों की मानें तो पंचायत प्रधानों से मनरेगा के बजट को खर्च करने की शक्तियां इसलिए वापस ली गई हैं ताकि वित्तीय ऑडिट में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। इसके साथ ही, अब केवल जीएसटी पंजीकृत विक्रेता ही टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने के लिए आमंत्रित किए जाएंगे।
टेंडर के लिए अब अलग-अलग विज्ञापन जारी नहीं किए जाएंगे, बल्कि ब्लॉक स्तर पर एक बार ही पंचायतों की मांग के अनुसार मनरेगा के तहत कंपनियों को आमंत्रित किया जाएगा।
मनरेगा से जुड़े सभी कार्य अब ब्लॉक अधिकारी के नियंत्रण में होंगे। पहले प्रत्येक पंचायत में प्रधानों के कार्यों में अलग-अलग दरें होती थीं और कई बार बजट खर्च के ऑडिट में भी कठिनाइयां आती थीं। कुछ पंचायतों द्वारा मनरेगा के बजट के दुरुपयोग की शिकायतें भी सामने आई थीं।
इन्हीं कारणों से अब पंचायतों के विकास की जिम्मेदारी बीडीओ को सौंपी जाएगी और केंद्र से आने वाला बजट ब्लॉक स्तर पर आएगा। पंचायतों के प्रस्तावों पर बीडीओ अपने नियंत्रण में रहकर मनरेगा के कार्यों को करवाएंगे।
गौरतलब है कि अभी तक पंचायतों में पंचायत प्रधान ही मनरेगा के तहत करोड़ों रुपये के बजट को खर्च करने के लिए सर्वेसर्वा होते थे। केंद्र से योजना के तहत आवंटित बजट सीधे पंचायतों को दिया जाता था और प्रधान ही निर्माण सामग्री व कंपनियों को ठेका देते थे।
हालांकि, अब विकास कार्यों के लिए पंचायत प्रधानों की शक्तियां सीमित हो जाएंगी। पिछले वित्त वर्ष में केंद्र सरकार से मनरेगा के तहत 1800 करोड़ रुपये का बजट जारी हुआ था,
लेकिन इस वित्तीय वर्ष में योजना में हो रहे बदलावों के कारण अभी तक बजट जारी नहीं हुआ है। ऐसे में प्रदेश सरकार को जल्द ही मनरेगा के तहत नए वित्तीय नियमों को अपनाकर केंद्र सरकार को सूचित करना होगा।
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