हिमाचल नाऊ न्यूज़ काला अंब (सिरमौर)।
मारकंडेय नदी के पवित्र जल में इन दिनों मछलियों का बड़े पैमाने पर अवैध शिकार किया जा रहा है, जिससे न केवल नदी का पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) बल्कि स्थानीय लोगों की धार्मिक भावनाएं भी आहत हो रही हैं।सूत्रों के अनुसार, यह अवैध शिकार केवल जाल या काँटे तक सीमित नहीं है,
बल्कि मछलियों को सामूहिक रूप से मारने के लिए ब्लीचिंग पाउडर और डायनामाइट जैसे बर्बर तरीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि ब्लीचिंग पाउडर के इस्तेमाल से न केवल खाने योग्य बड़ी मछलियाँ मरती हैं,
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बल्कि नदी में पल रहे मछलियों के बीज (अंडे और छोटे बच्चे) भी पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। इस तरह के विनाशकारी तरीके नदी के पूरे जीवन चक्र को समाप्त करने की कगार पर हैं।
*प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल*
अवैध रूप से किए जा रहे मछलियों के इस बर्बर शिकार को रोकने या इन पर नकेल कसने वाला कोई भी सरकारी तंत्र या अधिकारी कहीं नज़र नहीं आ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की इस निष्क्रियता के कारण शिकारी बेखौफ होकर नदी को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
लोगों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि मछलियों के इस अवैध और बर्बर तरीके से किए जा रहे शिकार को लेकर उनकी धार्मिक भावनाएं भी बुरी तरह आहत हो रही हैं। मारकंडेय नदी का धार्मिक महत्व है और इस तरह जलीय जीवन को नष्ट करना आस्था पर कुठाराघात माना जा रहा है।
स्थानीय निवासियों ने जिला प्रशासन और मत्स्य पालन विभाग से तत्काल हस्तक्षेप करने और इस अवैध गतिविधि में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है, ताकि नदी के पर्यावरण और धार्मिक आस्था दोनों की रक्षा की जा सके।
वही मत्स्य विभाग के इंस्पेक्टर तजेंद्र प्रकाश ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि मत्स्य विभाग में सबसे बड़ी दिक्कत स्टाफ की कमी है। उन्होंने कहा कि ब्लीचिंग और अन्य रसायन इस्तेमाल करना न केवल घातक है बल्कि यह पर्यावरण संतुलन को भी बिगाड़ता है। उन्होंने कहा कि वह खुद टीम बनाकर इस पर अंकुश लगाने की कोशिश करेंगे।
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