HNN/संगड़ाह
सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर वाले गिरिपार क्षेत्र में पारंपरिक अंदाज में भराड़ी पूजन व हुशू कहलाने वाली मशालों को जलाकर आठ्ठों पर्व मनाया गया। दीपावली से तीन सप्ताह पहले दुर्गा अष्टमी के दिन मनाए जाने वाले इस त्यौहार को इलाके में छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है, जबकि दिवाली के एक माह बाद आने वाली अमावस्या को बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है।
आठ्ठों अथवा दुर्गा अष्टमी के दिन से क्षेत्र में दीपावली की तैयारियां शुरू हो जाती है तथा इसे दिवाली का पहला पड़ाव कहा जाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार दुर्गा अष्टमी का शुभ मुहूर्त गुरुवार बाद दोपहर से शुक्रवार बाद दोपहर तक होने के चलते क्षेत्र के कुछ गांवों तथा गुरुवार तो कुछ जगह शुक्रवार को आठ्ठों पर्व मनाया गया। अष्टमी अथवा आठ्ठों की रात्रि हुशू कहलाने वाली मशालें जलाई गई। गिरिपार में दिवाली व बूढ़ी दियाली एक-दो दिन नहीं बल्कि चौदश, अवांस, पोड़ोई, दूज, तीज, चौथ व पंचमी के नाम से सप्ताह भर मनाई जाती है। आठों अथवा दुर्गा अष्टमी पर क्षेत्र में भराड़ी नामक विशेष जंगली फूल के डमरु बनाकर इससे मां भवानी अथवा गौरा का पूजन किया जाता है।
सिरमौर के हिमालयाई अथवा पहाड़ी जंगलों में पाए जाने वाले सफेद रंग के इन पवित्र फूलों को सुबह घर का एक सदस्य बिना किसी से बात किए व बिना कुछ खाए-पिए जंगल से लेकर आता है। इनके डमरू नुमा गुच्छे को पूजा के बाद में इसे जल अथवा अग्नि में प्रवाहित किया जाता है। अष्टमी अथवा आठों की सुबह बनने वाली खिचड़ी का भोग लगाकर भराड़ी पूजन किया जाता है। सूर्यास्त होने के बाद बच्चों अथवा कन्याओं को आठ्ठों पर बनाए जाने वाले धोरोटी-भात व खिचड़ी आदि पारम्परिक व्यंजन प्रसाद स्वरूप बांटे जाते हैं।
इस प्रक्रिया के बाद हुशू कहलाने वाली बाबड़ी घास व अन्य ज्वलनशील पदार्थों से बनी विशेष मशालें जलाकर सिर पर घुमाई जाती है। मशालें जलाने के दौरान स्वर्गलोक विजेता एवं दानवीर राजा बलि का जयघोष किया जाता है। गिरिपार अथवा सिरमौर में प्रचलित मान्यता के अनुसार मशालें सिर पर घुमाने से कष्टों, आपदाओं व बुरी आत्माओं के साये से मुक्ति मिलती है। गुरुवार व शुक्रवार को सिरमौर के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ आदि की करीब 150 पंचायतों में पारंपरिक अंदाज से आठ्ठों अथवा दुर्गा अष्टमी त्यौहार मनाया गया तथा राजा बलि का जयघोष हुआ। आंठ्ठों के अलावा क्षेत्र में माघी, बूढ़ी दिवाली, दूज, गुग्गा नवमी व पांजवी आदि त्यौहार भी शेष हिंदुस्तान से अलग अंदाज में मनाए जाते हैं।
इन्हीं परंपराओं व त्योहारों तथा विषम भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर गिरिपार के हाटी समुदाय पिछले साल भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किया गया हैं। बहरहाल गिरिपार में पारंपरिक अंदाज में आठ् बड़े उत्साह और उल्लास के साथ आठ्ठों त्यौहार मनाया गया।