अपने जमाने की चंचल शोख हसीना रही वहीदा को हिमाचल से रहा बेहद प्यार, अब हिमाचल के ही अनुराग ठाकुर ने पुरस्कार की करी घोषणा
HNN News नई दिल्ली
अपने जमाने की चंचल शोख हसीना और चौहदवीं का चांद कहलाने वाली 85 वर्षीय वहीदा रहमान को भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया है। बड़ी बात तो यह है कि हिमाचल की वादियो से बेहद प्यार करने वाली वहीदा रहमान को इस पुरस्कार को दिए जाने की घोषणा भी हिमाचल के लाल केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के द्वारा की गई है।
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हालांकि वहीदा रहमान को 1972 में पदम श्री तथा 2011 में पादप भूषण भी मिला है मगर फिल्मी जगत का सर्वोच्च पुरस्कार उन्हें अब 85साल की उम्र में जाकर मिला है।
बता दें कि दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भारत सरकार की ओर से दिए जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार होता है। यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा में कलाकार के आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। हिंदी सिनेमा जगत के जन्मदाता कहलन वाले दादा साहेब फाल्के के नाम पर यह सम्मान भारत सरकार की ओर से दिया जाता है।

यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा से जुड़ी देविका रानी को सबसे पहले दिया गया था। 9 अगस्त 2019 के बाद से यह पुरस्कार अब 2021 के लिए वहीदा रहमान को दिया गया है।
वही केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने वहीदा रहमान को यह पुरस्कार दिए जाने के दौरान कहा कि जिन फिल्मों में वहीदा रहमान ने काम किया है वह फिल्में आज भी कालजई कहलाती हैं। उन्होंने कहा कि उसे दौर में जो फिल्में बना करती थी वह सामाजिक कुरीतियों पर आधारित होती थी और उन फिल्मों में वहीदा रहमान के अभिनय को बहुत सराहा जाता था। उन्होंने कहा कि एक लीजेंडरी एक्ट्रेस को उनकी प्रतिभा के अनुरूप दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देते हुए मुझे भी फक्र हो रहा है।

चलिए अब बताते हैं आपको की वहीदा रहमान का जन्म 3 फरवरी 1938 को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में हुआ था हुआ था। उन्होंने भारतीय सिनेमा में तेलुगू तमिल और बंगाली फिल्मों में भी अभिनय किया है । उनका विवाह 1974 में कमलजीत के साथ हुआ था। वहीदा रहमान ने चेन्नई में भारत ने आइटम सीखा था और जब वह किशोर अवस्था में थी तब उनके पिता का देहांत हो गया था।
वहीदा ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत 1955 में तेलुगु फिल्म से की थी। 1957 में गुलाबो की भूमिका में उन्होंने प्यासा फिल्म में अपनी पहली हिंदी फिल्म की थी । उसके बाद 1958 में 16 साल उससे अगले वर्ष कागज के फूल जिसमें बतौर हीरोइन उनका नाम शांति था फिर गर्लफ्रेंड एक फूल चार कांटे काला बाजार चौहदवीं का चांद, रूप की रानी चोरों का राजा साहेब बीवी और गुलाम 1962 में यह फिल्म मिल का पत्थर साबित हुई थी। एक दिल 100 अफसाने 1964 में कोहरा 1965 में देवानंद के साथ गाइड पिक्चर ने रिकॉर्ड तोड़े थे।

दिलीप कुमार के साथ राम और श्याम पत्थर के सनम 1968 में राजकुमार के साथ नीलकमल एक यादगार फिल्म रही है। मेरी भाभी, प्रेम पुजारी, दर्पण, रेशमा और शेरा ,फागुन, अदालत, प्यासी आंखें कुली मार्शल 1986 में अल्लाह रखा 1991 में लम्हे, 2005 में मैंने गांधी को नहीं मारा 2002 में ओम जय जगदीश तथा 2006 में रंग दे बसंती जिसमें उन्होंने अजय की मां की भूमिका निभाई थी यह अभिनय आज भी सराहा जाता है। वहीदा रहमान ने एक अंग्रेजी फिल्म 2005 में बनी 15 पार्क एवेन्यू में भी काम किया है।
वहीदा रहमान को मिले इस पुरस्कार को लेकर के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें बधाई दी है।
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