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हिमालय क्षेत्र में होगी भारी बारिश वाडिया के वैज्ञानिक ने बता दिया था पहले ही..

Shailesh Saini | 2 सितंबर 2023 at 9:24 pm

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रिसर्च डॉक्युमेंट्स में क्लाइमेट ऑफ पास्ट में श्री रेणुका जी झील के सेडिमेंट बने थे अहम, फिर भी सरकार क्यों नहीं जागी

HNN/ नाहन

हिमाचल प्रदेश और हिमालय क्षेत्र में भारी बारिशों के चलते पैदा हुई आपदाओं के कारणों पहले ही खुलासा किया जा चुका था। बावजूद इसके देश के प्रमुख वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालय जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक नरेंद्र मीणा ने पहले ही अपनी रिसर्च में बता दिया था। जिसका रिसर्च डॉक्युमेंट्स हमने पहले भी हिमाचल नाउ न्यूज़ पर प्रकाशित किया था।

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बावजूद इसके हिमाचल प्रदेश सरकार आपदाओं के कारणों की तलाश को लेकर हवा में ही हाथ मार रही है। असल में इस रिसर्च डॉक्यूमेंट के तहत हिमालय की तलहटी में स्थित रेणुका झील के असवादों से पूरा क्लाइमेट ऑफ पास्ट का रिकॉर्ड रिकंस्ट्रक्ट किया गया था।

वैज्ञानिक के द्वारा इस रिकार्ड को निकालने के लिए कई प्रोक्सी पैरामीटर का उपयोग किया गया तथा झील के असवादों की उम्र की गणना लेड आइसोटोप की मदद से की गई थी। अब इससे जो आंकड़े प्राप्त हुए थे उससे वैज्ञानिक के द्वारा उत्तर पश्चिम हिमालय में मानसून की वर्षा का वितरण के पैटर्न का पता लगाया गया था। यह खोज बड़ी अहम मानी गई थी।

खोज में पाया गया कि समुद्र की स्टार के तापमान में बदलाव जिसको अल नीनो(ENSO) तथा इंडियन ओशन डाई पोल(IOD) के नाम से परिभाषित किया गया है। यह दोनों एक दूसरे के साथ इंटरप्ले की संभावनाओं की विभिन्न दशाओं को इंगित करता है और यही दशाएं उत्तर पश्चिम भारत के मानसून की वर्षा की दशा को नियंत्रित करती है।

इस रिसर्च पेपर में यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया गया था कि किसी भी साल या फिर लगातार कुछ सालों तक पॉजिटिव आईओडी और इएनएसओ का मिलन उत्तर पश्चिम हिमालय में भारी वर्षा ला सकता है। तो आप सोच सकते हैं कि इस रिसर्च डॉक्युमेंट्स में इस चीज का खुलासा पहले ही कर दिया था। और हम बात तो यह है कि यह भारी वर्षा तो अगले साल भी मानसून से पहले या मानसून के दौरान हो सकती है।

मगर वैज्ञानिक ने मौसम विज्ञान की फोरकास्ट में कुछ चीजों को और शामिल कर किस क्षेत्र में अधिक वर्षा किस दिन होनी है उसकी जानकारी पहले से ही बड़े सटीक तरीके से मिल सकती है। फिर संबंधित प्रदेश की सरकार पहले से ही उसे क्षेत्र में नुकसान से बचने के लिए इंतजाम भी पक्के कर सकती है। इंसान प्रकृति से लड़ नहीं सकता मगर होने वाले नुकसान से काफी हद तक बच सकता है।

डॉ मीणा की जनरल ऑफ जिओ साइंस की रिसर्च अहम मानी जा सकती है और बड़ी बात तो यह है कि इस के इतिहास को खंगाल के लिए वैज्ञानिक ने हिमाचल प्रदेश की 15000 वर्ष पुरानी श्री रेणुका जी झील के ढाई सौ वर्ष पुराने सेडिमेंट्स के आधार पर अपनी खोज को आगे बढ़ाया है।

वैज्ञानिक के रिसर्च में यह भी स्पष्ट है की मौसम का प्रिडिक्शन मॉडल बड़ा ही मजबूत बनाया जा सकता है जिसमें सरकार को एक डॉप्लर रडार स्थापित करना होगा। यह डॉपलर रडार बताया कि वर्षा कितनी होगी और किस क्षेत्र में होगी।

आप जानकर यह भी हैरान होंगे कि यह शोध पत्र 2021 में प्रकाशित किया गया था जिसमें हिमालय क्षेत्र में घास तौर से हिमाचल में ज्यादा बारिश के रूप में किस तरीके के नुकसान हो सकते हैं यह पहले बता दिया गया था।

बावजूद इसके बावजूद इसके भारी तबाही प्रदेश में देखने को मिली है। खबर की पुष्टि के लिए डा. नरेंद्र मीणा के मोबाइल न.8171360700 पर संपर्क किया। वैज्ञानिक ने अपना रिसर्च डॉक्युमेंट्स हमें व्हाट्सएप भी किया।

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