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गिरिपार में बैशाखी पर लगते हैं झूले

HNN/संगड़ाह

सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं के संरक्षण के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में बैशाखी पर्व झूले लगाए जाने की परंपरा कायम है। क्षेत्र में उक्त पर्व को दो दिन मनाया जाता है। शुक्रवार सांय पारम्परिक वाद्ययंत्रों की ताल पर रस्सा-कशी व पींग फांदने की रस्म की परम्परा निभाई गई।

शनिवार सुबह इलाके के पेड़ों पर झूले लगाए गए। बाबड़ी नामक विशेष घास से बनाए जाने वाली मोटी रस्सी के झूलों पर न केवल बच्चे बल्कि अन्य लोग भी कम से कम एक बार झूलना अच्छा शगुन समझते है। करीब 3 लाख की आबादी वाले गिरिपार क्षेत्र की 155 पंचायतों में बैसाखी पर लोग कुल देवता को अनाज चढ़ाते हैं तथा इस दिन देवता की विशेष पूजा की जाती है।

बैशाखी के दूसरे दिन को इलाके में बिशु रो साजो के नाम से मनाया जाता है। इस दिन से क्षेत्र में बिशु मेले का दौर भी शुरू हो जाता है। शनिवार को यहां बिशुड़ी साजा के नाम से बैशाखी मनाई गई। इस दिन परम्परा के चलते शिरगुल महाराज मंदिर चूड़धार के कपाट भी छह माह के लिए खुल जाते हैं, हालांकि सेवा समिति द्वारा यहां भंडारा अगले माह से शुरु किया जाएगा।

क्षेत्र के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ आदि में कईं स्थानों पर बिशु मेलों के दौरान तीर कमान से महाभारत का सांकेतिक युद्ध होता है। बैशाखी की पूर्व संध्या पर क्षेत्र के विभिन्न गांव में सामूहिक रुप से एक बकरा काटने की भी परंपरा है तथा इसे बिशवाड़ी कहा जाता है। कुछ अरसा पहले तक क्षेत्र में कईं लोग बिशुड़ी पर शिकार भी करते थे।

गिरिपार मे न केवल बैशाखी को अलग अंदाज में मनाया जाता है, बल्कि यहां लोहड़ी के दौरान जहां एक साथ 40 हजार के करीब बकरे कटते हैं, वही गुगा नवमी पर भक्त खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। भैया दूज को सास-दामाद दूज के रुप में मनाया जाता है, तो ऋषि पंचमी पर श्रद्धालु आग से खेलते हैं। बहरहाल गिरिपार मे आज भी बैशाखी पर बाबड़ी के झूले की सदियों पुरानी परंपरा कायम है।

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