Himachalnow / कुल्लू
पार्वती नदी का कटाव, सीवरेज की बदहाली और गर्म पानी की कमी से बढ़ी मुश्किलें
तीर्थस्थलों के जल को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था
मणिकरण और खीरगंगा तीर्थस्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यहां का प्राकृतिक गर्म पानी भी एक विशेष आकर्षण है। श्रद्धालु यहां से जल बड़ी श्रद्धा और पवित्रता के साथ अपने घरों में ले जाते हैं। यह जल धार्मिक कार्यों और घरेलू उपयोग के लिए रखा जाता है, न कि किसी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए। गंगाजल की तरह, इस जल को भी पूरी शुद्धता और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ संग्रहित किया जाता है।
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पार्वती नदी का कटाव और पर्यावरणीय संकट
पार्वती नदी के लगातार बढ़ते कटाव ने इस क्षेत्र को गंभीर संकट में डाल दिया है। गांवों के ऊपरी भाग से लेकर गुरुद्वारे तक का इलाका प्रभावित हो चुका है। नदी के किनारों का कटाव इतना ज्यादा हो गया है कि इससे पूरे क्षेत्र की भौगोलिक संरचना प्रभावित हो रही है। यदि इस समस्या को जल्द हल नहीं किया गया तो स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं के लिए यह क्षेत्र असुरक्षित हो सकता है।
सीवरेज की दयनीय स्थिति और गिरती संरचनाएं
मणिकरण और इसके आसपास के क्षेत्रों में साफ-सफाई और सीवरेज की स्थिति बेहद खराब है। पार्वती कॉम्प्लेक्स पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है, जिससे लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पूरे क्षेत्र में धूल और गंदगी फैली हुई है, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि यहां आने वाले पर्यटकों और स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है।
गर्म पानी पर निर्भरता और ठंडे पानी की कमी
मणिकरण क्षेत्र में ठंडे पानी की उपलब्धता बेहद सीमित हो गई है। स्थानीय लोग और श्रद्धालु केवल गर्म पानी पर निर्भर हो गए हैं, जिसे ठंडा कर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, अब मणिकरण का गर्म पानी कसोल तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है, जिससे यहां पानी की समस्या और गंभीर हो सकती है।
स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं की मांग
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, स्थानीय लोग और श्रद्धालु सरकार और प्रशासन से ठोस समाधान की मांग कर रहे हैं। पार्वती नदी के कटाव को रोकने, सीवरेज सुधारने और जल संकट को हल करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो यह क्षेत्र अपनी धार्मिक और पर्यावरणीय महत्ता खो सकता है।
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