HNN/संगड़ाह
जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में शाही कहलाने वाला 4 दिवसीय माघी त्यौहार मकर संक्रांति पर परम्परा के अनुसार समपन्न हो गया। मकर संक्रांति पर सभी घरों में पटांडे व अस्कली आदि घी, खीर व दाल के साथ खाए जाने वाले पारम्परिक व्यंजन पकते है और माघ मास के पहले दिन किसी भी घर मे मांसाहारी भोजन नहीं पकता। साजे के नाम से मनाई जाने वाली मकर संक्रांति पर लोग अपने कुल देवता को अनाज व घी की भेंट चढ़ाते हैं।
करीब तीन लाख की आबादी वाले गिरिपार की 154 पंचायतों मे सदियों से यह त्यौहार इसी अंदाज मे मनाया जाता हैं। बर्फ अथवा कड़ाके की ठंड से प्रभावित रहने वाली गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर की विभिन्न पंचायतों मे हालांकि दिसंबर माह की शुरुआत से ही मांसाहारी लोग अन्य दिनों से ज्यादा मीट खाना शुरु कर देते हैं, मगर 11 से 14 जनवरी तक चलने वाले माघी त्यौहार के दौरान क्षेत्र के मांसाहारी परिवारों द्वारा शुरुआती 3 दिनों के बकरे काटे जाने की परंपरा भी अब तक कायम है।
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इस त्यौहार में शाकाहारी लोगों के लिए कईं पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं, जिनमें मूड़ा, तेलवा, शाकुली, तेलपकी, सीड़ो, पटांडे व अस्कली आदि शामिल हैं। माघी त्यौहार को खड़ियांटी, डिमलांटी, उत्तरांटी व साजा अथवा संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार के चलते इस बार भी क्षेत्र में अचानक बकरों की कीमत में उछाल आ गया था। पिछले कुछ दशकों में इलाके में शाकाहारी परिवारों की संख्या भी बढ़ी है तथा ब्राह्मण बहुल कुछ गांव में बकरे काटने की परम्परा लोग छोड़ चुके हैं।
गिरिपार के अंतर्गत आने वाले सिरमौर जिला के विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ मे हालांकि 90 फीसदी के करीब किसान परिवार पशु पालते हैं, मगर पिछले चार दशकों मे इलाके के युवाओं का रुझान सरकारी नौकरी, नकदी फसलों व व्यवसाय की और बढ़ने से क्षेत्र मे बकरियों को पालने का चलन घटा है। मीट का कारोबार करने वाले व्यापारियों द्वारा राजस्थान, सहारनपुर, नोएडा व देहरादून आदि मंडियों से क्षेत्र में बड़े-बड़े बकरे उपलब्ध करवाए जाते हैं।
क्षेत्र के विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के सर्वेक्षण के मुताबिक गिरीपार मे लोहड़ी के दौरान मनाए जाने वाले माघी त्यौहार पर हर वर्ष करीब 40 हजार बकरे कटते हैं और इन पर करीब 60 करोड़ की रकम खर्च होती है। माघी त्यौहार के क्षेत्र के बाजारों मे सामान्य से ज्यादा खरीददारी पिछले 4 दिनों में हुई। रविवार को लोगों के मंदिरों अथवा धार्मिक यात्राओं पर जाने के चलते बसों में भारी भीड़ रही।
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