HNN/ नाहन
जहरीली शराब कांड में शामिल मुख्य आरोपियों को भले ही पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया हो मगर कुछ बड़े सवाल भी खड़े होने शुरू हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल इस प्रकरण में गठित एसआईटी को लेकर खड़ा हो रहा है। उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व में एच ए एस अधिकारी रहे वी आर कौंडल ने भी इस पर सवालिया निशान लगाए हैं। बड़ी बात तो यह है कि गठित जांच कमेटी में अदर जोन के डीआईजी, एसपी अथवा डीएसपी आदि को क्यों नहीं शामिल किया गया। मामला मुख्यमंत्री के गृह जिला का है।
लिहाजा जनता के बीच बड़ी चर्चा यही है कि बिना पुलिस के संरक्षण के जहरीली नकली शराब बनाए और बेचे जाने का कारोबार चल ही नहीं सकता था। जाहिर सी बात है इस बड़े खेल में ना केवल पुलिस शामिल हो सकती है बल्कि कुछ प्रभावशाली लोग भी शामिल हो सकते हैं। ऐसे में भले ही मुख्य अपराधी पकड़ लिए गए हो मगर जिन लोगों के संरक्षण से कार्य चल रहा था वह अभी तक पुलिस की गिरफ्त में क्यों नहीं है।
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जानकारी यह भी है कि सलापड के साथ लगते थाना क्षेत्र में कथित नकली शराब से भरा ट्रक पकड़ा गया था। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मामले में एफआइआर भी दर्ज की गई थी। मगर राजनीतिक पहुंच अथवा पकड़ के चलते कथित शराब खुर्द-बुर्द कर दी गई थी। जाहिर सी बात है मामले में किसी ना किसी को बचाने के लिए इस जघन्य अपराध पर लीपा-पोती की जाएगी। मामला नकली अथवा जहरीली शराब का नहीं शराब पीकर मरने वालों का है। कितने परिवार उजड़ गए और अभी भी कई मरणासन्न पर हैं।
ऐसे में क्या सरकार को यह नजर नहीं आ रहा था कि मामले की जांच हाई कोर्ट के सिटिंग जज अथवा रिटायर्ड जज से जुडिशल जांच कराई जाए। जानकारी के अनुसार जिस मुख्य अपराधी को पकड़ा गया है उसने पिछले कुछ अर्से में ही अकूत संपदा अर्जित की है। कालू उर्फ नरेंद्र के अलावा बैजनाथ के अजय, पालमपुर के गौरव सहित हमीरपुर के गलू निवासी प्रवीण की बैकग्राउंड हिस्ट्री भी सही नहीं है। जानकारी तो यह भी है कि कथित अपराधी प्रवीण पहले भी L13 यानी देसी दारू का काम कर चुका है।
राजनीति में भी हाथी चुनाव चिन्ह वाली पार्टी से दावेदारी कर चुका है। सवाल तो यह भी उठता है कि सरकार का आबकारी एवं कराधान विभाग हर वर्ष शराब के ठेके अलाट करता है। बाहरी राज्यों से आने वाली शराब और अब तो प्रदेश में ही बनने वाली नंबर दो की शराब के चलते शराब के ठेकेदार घाटे पर घाटा खाते रहते हैं। शराब के ठेकेदार संरक्षण प्राप्त नंबर दो के कारोबारियों से लंबे समय से परेशान भी चल रहे हैं। जाहिर है बिना संरक्षण के यह कार्य किसी भी सूरत में चल नहीं सकता।
सवाल तो यह भी उठता है कि जब एसआईटी का गठन किया गया तो उसमें अपराध जोन के ही अधिकारियों को क्यों शामिल किया गया। जबकि इस जघन्य कांड में यह अधिकारी भी बराबर के दोषी माने जाने चाहिए। यही नहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री को प्राथमिक तौर पर सबसे पहले इन्हीं अधिकारियों को जिम्मेवार मानते हुए कार्यवाही अमल में लाई जानी चाहिए थी।
गौरतलब हो कि शातिर अपराधियों ने संसारपुर कांगड़ा की शराब फैक्ट्री के प्रोडक्ट का डुप्लीकेट ब्रांड तैयार किया था। जानकारी तो यह भी है कि इस शराब फैक्ट्री के द्वारा भी नकली ब्रांड के बाबत सवाल उठाए गए थे। बावजूद इसके कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। यहां एक ओर बड़ा खुलासा यह भी हुआ है वर्ष 2019-20 में वी आर वी फूड्स के नाम से ऊना में 56 पेटी नकली शराब की पकड़ी भी गई थी। जिसको लेकर मामला भी दर्ज किया गया था। मामला न्यायालय में भी पहुंचा।
मगर इस जांच में भी अपराधी साफ बच गए थे। यहां यह भी बता दें कि वीआरवी कांगड़ा जिला के नूरपुर में लगी सबसे पुरानी 1995 की डिस्टलरी है। मार्केट में इस ब्रांड की सबसे ज्यादा डिमांड भी है। शराब माफिया के द्वारा प्रचलित ब्रांड का फायदा उठाते हुए उस दौरान बिल्कुल इसी नाम से ही नकली ब्रांड उतारा गया था। जांच में बैच नंबर सहित कई खामियां पाई गई थी। लिहाजा, असली ब्रांच दागदार होते बच गया था। बावजूद इसके संरक्षण प्राप्त माफिया बेखौफ होकर नकली शराब के कारोबार में जुड़ा रहा।
तो वही प्रदेश में देसी दारू बनाने वाली अधिकतर कंपनियां बड़े घाटे में आना शुरू हो गई। इसका सबसे बड़ा नुक्सान ना केवल फैक्ट्री संचालकों को हुआ बल्कि करोड़ों के ठेके लेने वाले ठेकेदार भी बर्बादी की कगार पर पहुंचे। अब जब बेखौफ माफिया ने वीआरबी फूड की जगह बीआरबी फूल नाम से अपनी ही नंबर दो की डिस्टलरी तैयार करें तो नतीजा सबके सामने आ गया। एक बात तो साफ जाहिर है कि कथित माफिया आज से नहीं बल्कि कई सालों से प्रदेश में जहर बेच रहा है।
बावजूद इसके मामले की जांच जहां जुडिशरी तौर पर होनी चाहिए थी उसकी जगह एसआईटी से जांच करवाई जा रही है। आखिर कोई तो ऐसा होगा जिसको बचाने के लिए जांच केवल उन अपराधियों तक सीमित नजर आती है जिन्होंने जहर बेचा। जिन लोगों के संरक्षण में यह जहर बेचा गया आखिर तक एसआईटी अभी तक क्यों नहीं पहुंच पाई है। प्रदेश में गुणवत्ता परक पूरे पैरामीटर के साथ बनाए जाने वाला सबसे पुराना ब्रांड आज बर्बाद होने से बाल-बाल बच गया।
बड़ा सवाल तो यह भी उठ रहा है कि प्रदेश में शराब माफिया ना केवल कांगड़ा, मंडी जिला में सक्रिय है बल्कि सिरमौर, शिमला भी इससे अछूता नहीं है। जानकारी तो यह भी है कि बिना लाइसेंस फीस के होलसेल से रिटेल को पहले भी कई पेटियां दारू की गई है। उस प्रकरण में भी इंक्वायरी चल रही है। जिसमें ऊना, कांगड़ा सहित शिमला भी शामिल रहा है। इस प्रकरण में एक्साइज से कंपनी का परमिट लेकर उसमें टेंपरिंग कर अधिक माल उठाया गया। इससे एक्साइज को भी बड़ा चुना लगा था। मामला अभी भी जांच में ही चला हुआ है।
बरहाल देखना यह है कि इस जहरीली शराब कांड के बाद प्रदेश की छवि जो पूरे देश भर में दागदार हुई है उसमें प्रदेश सरकार मुख्य अपराधियों के बाद उन वाइट कलर तक कब पहुंच पाएगी।
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