दी गई 1010 बीघा जमीन में 31 बीघा जमीन निकली कम, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की जमीन दिया जाना सवालों के घेरे में..
HNN/ नाहन
हिमाचल प्रदेश जिला सिरमौर के धौलाकुआं स्थित एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी तथा बागवानी विभाग की जमीन पर एक बार फिर संकट मंडराने लगा पड़ा है। इसकी बड़ी वजह आईआईएम सिरमौर को 7 जनवरी 2020 को दी गई 1010 बीघा जमीन में 31 बीघा जमीन पैमाइश के बाद कम निकल गई है। हालांकि हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा दी गई जमीन 1010 बीघा ही थी। मगर जब इसकी पैमाइश आईआईएम सिरमौर के द्वारा की गई, तो 31 बीघा जमीन गांव के लोगों के साथ ओवरलैप हो गई।
चूंकि आईआईएम को अपनी जमीन ऑन रिकॉर्ड पूरी चाहिए। लिहाजा बीते 25-26 नवंबर को आईआईएम सिरमौर की टीम धौलाकुआं पहुंची थी। इस दौरान टीम के साथ प्रदेश सरकार की ओर से एसडीएम पांवटा साहिब, तहसीलदार व अन्य रेवेन्यू अधिकारियों सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी भी मौजूद रहे। आईआईएम सिरमौर की टीम के द्वारा जिस जमीन को मांगा जा रहा है, वह जमीन एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की है। जिसमें कृषि विज्ञान केंद्र भी शामिल है।
हालांकि प्रशासन की ओर से आईआईएम को दो-तीन जगह ऑप्शन दी गई है। बावजूद इसके केंद्र से आई इस टीम ने यूनिवर्सिटी और कृषि विज्ञान केंद्र की जमीन की जिद पकड़ी हुई है। ऐसे में यदि कृषि विज्ञान केंद्र से जमीन दी जाती है, तो यह केंद्र सरकार के ही गले की फांस बन सकता है। क्योंकि कृषि विज्ञान केंद्र भी केंद्र का ही उपक्रम है। यही नहीं कृषि विज्ञान केंद्र के लिए 20 एकड़ जमीन का होना भी जरूरी होता है। जबकि कृषि विज्ञान केंद्र के पास केवल 5 एकड़ जमीन ही बची हुई है।
ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र की जमीन को किसी भी सूरत में जमीन की पूर्ति करने में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यहां यह भी बता दें कि धौला कुआं स्थित यूनिवर्सिटी के दो यूनिट है एग्रीकल्चर रिसर्च एंड एक्सटेंशन सेंटर और दूसरा कृषि विज्ञान केंद्र दोनों ही जिला सिरमौर के ग्रामीण क्षेत्र के मध्य नजर किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। हर वर्ष यहां लाखों किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है यही नहीं एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी का कैंपस है, जहां पर आने वाले छात्रों को भी यहां पढ़ाया-सिखाया जाता है।
अब आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि यूनिवर्सिटी की 126 बीघा बेश कीमती जमीन अगस्त 2017 में आईआईएम को दे दी गई थी। इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र के पास सिर्फ ढाई हेक्टेयर जमीन ही शेष रह गई थी। अब यहां थोड़ा फ्लैशबैक जाने की जरूरत है असल में 12 मार्च 2015 को केंद्र सरकार की समिति को धौलाकुआं में 210 एकड़ जमीन दिखाई गई थी।
इस तीन सदस्य समिति की अध्यक्षता शिक्षा मंत्री के तत्कालीन संयुक्त सचिव शशि प्रकाश गोयल ने कीथी जबकि उनके साथ आईआईएम अहमदाबाद के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर मनीष नंदा और तत्कालीन आईआईएम लखनऊ टास्क फोर्स के प्रमुख प्रोफेसर भारत भास्कर और साथ में दो अन्य सदस्य भी थे। हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन अधिकारियों के द्वारा सरकार के आदेश पर यह जमीन दिखाई गई थी।
अब जो हिमाचल प्रदेश से अधिकारी जमीन दिखाने के लिए आए थे उन्होंने यह भी नहीं देखा कि यह जमीन किसानों के हितों और उनके लिए बीज और फसलों के लिए किए जाने वाले प्रयोग व खोज में इस्तेमाल होती है। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि इस दौरान एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से अथवा प्रदेश सरकार के कृषि विभाग से किसी उच्च अधिकारी को जमीन चयन के दौरान शामिल नहीं किया गया था।
असल में प्रदेश के अधिकारियों के द्वारा यह दलील दी गई की जो जमीन इन्हें दिखाई जा रही है वह जमीन यूनिवर्सिटी की नहीं है। बल्कि बताया गया कि यह जमीन कृषि विभाग की है। मगर बाद में यह बड़ा खुलासा हुआ कि 1974 में तत्कालीन गवर्नर के द्वारा जमीन का मालिक आना हक यूनिवर्सिटी को सौंपा गया था। रेवेन्यू विभाग ने भी यही बताया था कि यह जमीन कृषि विभाग के नाम है जिस पर कृषि विज्ञान केंद्र का भी कब्जा है।
रेवेन्यू विभाग के द्वारा इसका वह रिकॉर्ड नहीं देखा गया जिसमें यह स्पष्ट था कि यह जमीन तत्कालीन गवर्नर के द्वारा समस्त अधिकारों के साथ स्थानांतरित कर दी गई थी। यहां बताना जरूरी है कि 1 नवंबर 1978 को कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में बना था जबकि 1974 में एचपी यूनिवर्सिटी के अंडर में एग्रीकल्चर कॉलेज हुआ करता था यह कॉलेज चंबाघाट में हुआ करता था। अब 1985 में सोलन जिला के नौणी में हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी भी बन गई और जो जमीन एग्रीकल्चर कॉलेज की थी वह नौनी यूनिवर्सिटी के नाम कर दी गई थी।
जाहिर है कि धौलाकुआं स्थित नौणी यूनिवर्सिटी तथा कृषि विश्वविद्यालय की जमीन कृषि विभाग के कब्जे की नहीं, बल्कि उन्हें तमाम एकाधिकारों के साथ दी गई थी। अब हालत यह है कि जहां 126 बीघा कीमती जमीन तो आईआईएम को चली गई। मगर उसकी एवज में 126 मीटर जमीन तक नहीं इन्हें दी गई है। ऊपर से अब 31 बीघा जमीन को लेकर पसंद ना पसंद की जद्दोजहद शुरू हो गई है।
सवाल तो यह उठता है कि जिला सिरमौर का धौला कुआं क्षेत्र एक किसान प्रधान बेल्ट है। यहां के किसानों और बागवानों के हितों को देखते हुए डॉक्टर वाईएस परमार के द्वारा यहां रिसर्च सेंटर और यूनिवर्सिटी बनाई गई थी। हैरानी तो इस बात की भी है कि इस कीमती जमीन का चयन करते समय तत्कालीन सरकार के शीर्ष अधिकारियों के द्वारा इस घाटे का डिपार्टमेंट बताया गया था।
संभवत उन अधिकारियों को यह नहीं मालूम था कि दुनिया की सबसे बड़ी रिसर्च संस्था नासा भी एक बड़े घाटे का सौदा रहती है। ऐसे में यहां जो रिसर्च होती थी वह फायदे की कैसे हो सकती थी। जबकि रिसर्च के बाद जो भी यहां पर तैयार होते थे उन बीजों से बेहतर फसल एक लाभ का जरिया होती थी। वहीं आईआईएम को लेकर भाजपा और कांग्रेस के नेताओं में भी वाह वाही लूटने की होड़ लग गई थी।
किसी ने भी यह नहीं सोचा कि किसानों की बेशकीमती जमीन को आईआईएम सिरमौर को दिए जाने के बाद आने वाले समय में यहां किसानों के हितों की किसी भी तरह से रक्षा नहीं हो पाएगी। आईआईएम सिरमौर एक ऐसा संस्थान है जिसमें पढ़ाई करने वाला छात्र मल्टीनेशनल कंपनियों में जाता है ना कि किसी सरकारी उपक्रम में या किसी विभाग में। यही नहीं जिस क्षेत्र की यह जमीन आईआईएम सिरमौर को दी गई है उसे क्षेत्र के किसी भी निवासी को या उनके बच्चों को इस संस्थान में किसी भी प्रकार का रिजर्वेशन नहीं मिलेगा।
कुल मिलाकर यहां के स्थानीय किसानों के लिए आईआईएम सिर्फ सफेद हाथी ही साबित होगा। वहीं अब सरकार के सामने आईआईएम की 1010 बीघा जमीन को पूरा करना भी बड़ी चुनौती बन जाएगा। केंद्र से आए अधिकारियों ने जिद पकड़ी हुई है कि उन्हें आईआईएम के साथ में ही जमीन चाहिए जो की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और उद्यान विभाग की है। वहीं मौजूद जिला प्रशासन के अधिकारी पूरे विषय पर पूरे गंभीरता से चिंतन भी कर रहे हैं। यही नहीं मौजूद अधिकारी वास्तविकता से भी अच्छी तरह से परिचित हैं।