अर्की कल्याण संस्था की 29 तारीख की बैठक/ रतनपाल या नोटा

स्वर्ण आयोग पर चुप्पी, सेमीफाइनल में जीत का बड़ा रोड़ा

HNN/ नाहन

प्रदेश में होने जा रहे उपचुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है भाजपा की राहें मुश्किल होती नजर आ रही हैं। हालांकि मुख्यमंत्री चारों सीटों के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। मगर अर्की और मंडी में देवभूमि क्षत्रिय संगठन तथा देवभूमि स्वर्ण मोर्चा एक बड़ी दीवार बनकर खड़ा हो रहा है। इसकी तस्दीक 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री के अर्की दौरे से भी की जा सकती है। क्योंकि इसी दिन स्वर्ण आयोग की मांग से जुड़े दोनों संगठन और मोर्चा द्वारा रैली भी निकाली गई थी।

अब इस स्वर्ण आयोग की मांग की अनदेखी की लहर मंडी की और भी चल पड़ी है। हालांकि लोगों का रुझान कहीं ना कहीं मुख्यमंत्री के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर था। जिसको लेकर संभवत स्वर्ण आयोग की मांग को जायज मानने वाला तबका नोटा की ओर रुझान कर सकता है। देवभूमि स्वर्ण मोर्चा के अध्यक्ष रूमित ठाकुर का कहना है कि मुख्यमंत्री खुद स्वर्ण वर्ग से संबंध रखने के बावजूद आयोग का गठन कर पाने में नाकामयाब रहे हैं। इनकी यही शिकायत है कि जब अन्य आयोग गठित कर दिए गए तो स्वर्ण आयोग को लेकर चुप्पी क्यों।

अब यदि अर्की उपचुनाव की बात की जाए तो भाजपा का बी गुट जोकि पूर्व में मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल में बड़ी आस्था रखता था। यह पूरा का पूरा गुट अभी तक साइलेंट मोड पर चल रहा है। विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 29 तारीख को अर्की कल्याण संस्था की एक बैठक प्रस्तावित हुई है। इस बैठक में गोविंद शर्मा समर्थक सहित सीटिंग प्रधान कर्मचारी नेता दाडला घाट यूनियन से जुड़े पूर्व बड़े पदाधिकारी, जिला परिषद के कुछ सदस्य आदि शामिल होंगे।

इस बैठक में बड़ा निर्णय लिया जाना सुनिश्चित किया गया है। जिसमें यह तय किया जाएगा कि नोटा का बटन दबाना है या फिर संजय अवस्थी को समर्थन देना है। यहां यह भी जानकारी मिली है कि इस गुट से जुड़े कई लोग भाजपा प्रत्याशी की ओर बिल्कुल भी नहीं जाएंगे। वही जानकारी यह भी है कि कांग्रेस से निष्कासित हुए प्रमुख चेहरे के कई साथी वापस कांग्रेस की ओर चले गए हैं। ऐसे में रतनपाल और संजय अवस्थी के बीच अब कांटे की टक्कर हो चुकी है।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि इस विधानसभा क्षेत्र में सुरेंद्र ठाकुर, जीतराम शर्मा, बालक राम शर्मा, राजू ठाकुर, नरेश गौतम, विजय ठाकुर, जिला परिषद के अध्यक्ष आशा परिहार आदि बड़े चेहरे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यह सभी चेहरे अपने अपने दल बल के साथ रतनपाल की जीत को सुनिश्चित करेंगे या नहीं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफ़ेसर प्रेम कुमार धूमल के बाद से उनके समर्थक अपनी सरकार में लंबे समय से खुद को हाशिए पर मान रहे हैं। तो अब 29 तारीख को होने वाली बैठक में अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है।

सवाल तो यह भी उठता है कि यदि नाराज गुट सहित देवभूमि क्षत्रिय संगठन और देवभूमि स्वर्ण मोर्चा कांग्रेस और बीजेपी की और ना जाते हुए नोटा की ओर जाता है तो इससे मौजूदा भाजपा सरकार की बड़ी किरकिरी होगी। बरहाल, अभी वक्त बाकी है और प्रदेश में सरकार भाजपा की है। भाजपा को इतना खतरा कांग्रेस से नहीं है जितना कि भितरघात से। वही अर्की और जुब्बल कोटखाई में भाजपा के चुनाव प्रभारियों की प्रतिष्ठा को अब दाव पर नहीं माना जा सकता है। इसकी बड़ी वजह मंडल को विश्वास में ना लिया जाना है।

जिसको लेकर अब कार्यकर्ता भी पशोपेश में है। मगर यह भी तय है कि यदि यह दोनों सीटें भाजपा गवा देती है तो इसकी हार का ठीकरा सीधे-सीधे मुख्यमंत्री और संगठन प्रमुख के सर् फूटेगा नाकि प्रभारियों के सर। बावजूद इसके प्रभारियों के द्वारा हरनीति को अपनाया जा रहा है। वहीं कांग्रेस बड़े ही साइलेंट मोड पर चली हुई है। जुब्बल कोटखाई में कांग्रेस और बीजेपी से ज्यादा चेतन पर क्षेत्र के लोगों का वर्चस्व सामने आ गया है।


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