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ISRO प्रोबा-3 मिशन की लॉन्चिंग आज, जानें इसके उद्देश्यों और कल की टालने वाली वजह

हिमाचलनाउ डेस्क | 5 दिसंबर 2024 at 9:31 am

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ISRO का प्रोबा-3 सोलर मिशन: एक नई अंतरिक्ष उपलब्धि

आज शाम ISRO अपने अंतरिक्ष मिशन के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाने जा रहा है। इस मिशन के तहत, यूरोपीय स्पेस एजेंसी का प्रोबा-3 सोलर मिशन लॉन्च किया जाएगा। हालांकि, इस मिशन की लॉन्चिंग पहले बुधवार शाम के लिए तय थी, लेकिन प्रोबा-3 स्पेसक्राफ्ट में आई खामी के कारण इसे टाल दिया गया था। अब इसे आज शाम 4:15 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा।

प्रोबा-3 मिशन क्या है?

प्रोबा-3 मिशन यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रोबा सीरीज का तीसरा सोलर मिशन है। खास बात यह है कि इस मिशन का पहला प्रोबा उपग्रह ISRO ने 2001 में लॉन्च किया था। इस मिशन के लिए कई देशों की टीमों ने मिलकर काम किया है, जिनमें स्पेन, बेल्जियम, पोलैंड, इटली और स्विट्जरलैंड शामिल हैं।

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इस मिशन की लागत लगभग 20 करोड़ यूरो, यानी करीब 1,778 करोड़ रुपये है। इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य के बाहरी वातावरण को बेहतर तरीके से समझना है। विशेष रूप से यह सूर्य के इनर कोरोना और आउटर कोरोना के बीच बने गैप की स्टडी करेगा।

PROBA-3 मिशन की विशेषताएँ

  • दो सैटेलाइट्स का लॉन्च: PROBA-3 दुनिया का पहला प्रेसिशन फॉर्मेशन फ्लाइंग सैटेलाइट है, जिसमें दो सैटेलाइट्स एक साथ लॉन्च होंगे। ये दोनों सैटेलाइट्स एक दूसरे से 150 मीटर की दूरी पर उड़ान भरेंगे।
  • सोलर कोरोनाग्राफ और ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट: इनमें से पहला सैटेलाइट कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट होगा, जबकि दूसरा ऑक्लटर स्पेसक्राफ्ट होगा। दोनों सैटेलाइट्स का वजन 550 किलोग्राम है।
  • सूर्य के कोरोना का अध्ययन: लॉन्चिंग के बाद, ये दोनों सैटेलाइट्स अलग हो जाएंगे और फिर सोलर कोरोनाग्राफ बनाने के लिए एक साथ पोजिशन किए जाएंगे। इसका उद्देश्य सूर्य के कोरोना का डिटेल स्टडी करना है। आपको बता दें कि सूर्य का कोरोना सूर्य के बाहरी एटमॉस्फियर को कहा जाता है।

मिशन का महत्व और भविष्य

इस मिशन से ISRO को न केवल अंतरिक्ष विज्ञान में एक और सफलता मिलेगी, बल्कि सूर्य के रहस्यों को जानने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी भी प्राप्त होगी। इसरो द्वारा किए गए इस मिशन के साथ, भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता और वैज्ञानिक नेतृत्व को और भी प्रगति देगा।

PROBA-3 मिशन, न केवल सूर्य के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग और ISRO की बढ़ती अंतरिक्ष क्षमताओं को भी प्रदर्शित करता है।

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