सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जनवादी महिला समिति की कड़ी आपत्ति
हिमाचल नाऊ न्यूज़ नाहन
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (AIDWA) हिमाचल प्रदेश की पूर्व राज्य अध्यक्ष संतोष कपूर ने अनुसूचित जनजाति (ST) की महिलाओं के पैतृक संपत्ति अधिकारों को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और महिला विरोधी करार दिया है।
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उन्होंने स्पष्ट किया कि यह फैसला हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 2(2) के तहत आया है, जो जनजातीय महिलाओं को उनके कानूनी अधिकार से वंचित करता है।
संतोष कपूर ने बताया कि हिमाचल प्रदेश का किन्नौर जिला अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल है, जहां की महिलाओं को पैतृक संपत्ति में कानूनन अधिकार नहीं मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि देश के बाकी हिस्सों में महिलाओं को पैतृक संपत्ति पर कानूनन अधिकार मिलता है, हालांकि वह अक्सर कागजों तक ही सीमित रहता है, लेकिन जनजातीय क्षेत्रों में यह अधिकार कानूनी और कागजी तौर पर भी नहीं मिल पा रहा है।
उन्होंने इस बात पर विडंबना जताई कि हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले (पैरा 63) में महिलाओं के पैतृक संपत्ति पर अधिकार सुरक्षित किए थे, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को निरस्त कर दिया।
जनवादी महिला समिति ने अब केंद्र सरकार से तत्काल कानून में संशोधन की मांग की है। समिति ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) को हटाने की पुरजोर मांग की है।
उनका तर्क है कि हिमाचल प्रदेश सहित अन्य जनजातीय घोषित क्षेत्रों में महिलाओं के पैतृक संपत्ति पर अधिकार सुरक्षित किए जाने चाहिए ताकि उनके नागरिक अधिकार और हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के कानूनी अधिकार सुनिश्चित हो सकें।
समिति ने यह भी मांग की है कि जनजातीय क्षेत्रों में परम्परागत रिवाज-ए-आम (कस्टमरी लॉ) की आड़ में महिलाओं के अन्याय और भेदभाव को मान्यता न देकर, उनके अधिकारों को सुरक्षित किया जाए।
समिति ने चेतावनी दी है कि यदि कानून में संशोधन नहीं किया जाता है, तो देश की आधी आबादी महिलाओं को संपत्ति के अधिकार से वंचित होना पड़ेगा, जबकि संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है।
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