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लैंसडाउन विधायक पर कांग्रेस का हमला: धीरेंद्र प्रताप ने परिवारवाद का आरोप लगाते हुए मांगा विकास का हिसाब

Shailesh Saini | 22 जुलाई 2025 at 5:14 pm

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हिमाचल नाऊ न्यूज़ देहरादून :

कांग्रेस उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने लैंसडाउन विधायक दिलीप रावत पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने विधायक और उनके करीबियों के पंचायत चुनावों में उतरने को लेकर सवाल उठाए हैं और क्षेत्र में हुए विकास कार्यों का विस्तृत ब्यौरा मांगा है।

धीरेंद्र प्रताप ने आरोप लगाया कि विधायक रावत के परिवार के सदस्य और उनके करीबी सहयोगी विभिन्न पंचायत सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने कई उदाहरण दिए, जिनमें विधायक के बड़े भाई की पत्नी, उनके PRO चंद्रकांत द्विवेदी, दूसरे PRO रणवीर सजवाण, और यहां तक कि विधायक की पत्नी व उनके सगे भाई की पत्नी का पंचायत चुनावों में उतरना शामिल है।

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कांग्रेस उपाध्यक्ष ने इस स्थिति को केंद्र सरकार के “परिवारवाद विरोधी” दावों के बिल्कुल उलट बताते हुए कहा, “एक तरफ केंद्र सरकार परिवारवाद न करने का दावा करती है, वहीं उत्तराखंड में पंचायती चुनाव में जो तस्वीर सामने आ रही है, वह दोहरा चरित्र दिखाती है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि स्थानीय स्तर पर भी “परिवारवाद” की जड़ें कितनी गहरी हैं।धीरेंद्र प्रताप ने सवाल उठाया कि जब केंद्र सरकार खुद को “पार्टी विथ डिफरेंस” और “परिवारवाद के खिलाफ लड़ाई” के रूप में पेश करती है, तो जमीनी हकीकत बिल्कुल विपरीत है।

उन्होंने माना कि पंचायती चुनावों में कोई पार्टी सिंबल नहीं होता, लेकिन सत्ता और संसाधनों का दुरुपयोग करके तीनों ब्लॉक पर एक ही परिवार का वर्चस्व कायम करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उपहास है। उन्होंने कहा, “परिवारवाद सिर्फ संसद और विधानसभा तक सीमित नहीं है। जब ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत में भी एक ही परिवार का दबदबा हो जाए, तो यह लोकतंत्र की हत्या है।

कांग्रेस उपाध्यक्ष ने विधायक से उनके पिछले 15 वर्षों के कार्यकाल का हिसाब मांगा। उन्होंने जानना चाहा कि इस अवधि में क्षेत्र में कौन से विकास कार्य हुए, कितने अस्पताल खुले, विद्यालयों का स्तर कितना सुधरा, कितने युवाओं को रोजगार मिला, और रिखणीखाल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक सड़क की क्या स्थिति है।

धीरेंद्र प्रताप ने अंत में कहा कि अगर जनता को केवल एक ही परिवार दिखे और विकास के नाम पर कुछ न मिले, तो यह लोकतंत्र का मजाक और जनता के अधिकारों का हनन है।

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