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यूनेस्को की वर्ल्ड रजिस्टर सूची में शामिल हुई भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र, भारत की सांस्कृतिक चेतना को मिला वैश्विक सम्मान

हिमांचलनाउ डेस्क नाहन | 18 अप्रैल 2025 at 2:28 pm

भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक धरोहर को मिला अंतरराष्ट्रीय मंच पर ऐतिहासिक दर्जा

यूनेस्को ने भारत की दो महत्वपूर्ण कृतियों, श्रीमद्भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल किया है। इस सूची में अब भारत की कुल 14 अमूल्य कृतियां शामिल हो चुकी हैं, जिससे देश की सांस्कृतिक चेतना को वैश्विक पहचान मिली है।

केंद्रीय मंत्री ने साझा की जानकारी
इस उपलब्धि की जानकारी केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर दी। उन्होंने लिखा कि श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि भारत की जीवन दृष्टि और कलात्मक अभिव्यक्ति के मूल स्तंभ हैं। इन ग्रंथों ने भारत के साथ-साथ विश्व को भी आत्मा और सौंदर्य की दिशा दी है।

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प्रधानमंत्री ने जताई खुशी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने लिखा कि गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की इस सूची में शामिल होना भारत के शाश्वत ज्ञान और सांस्कृतिक वैभव को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलने जैसा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सदियों से इन ग्रंथों की शिक्षाएं मानवता और सभ्यता को प्रेरणा देती आई हैं।

क्या है ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’
यूनेस्को की यह सूची उन विश्व धरोहरों को समर्पित है, जो मानव सभ्यता के इतिहास, संस्कृति और ज्ञान को संरक्षित करने में विशेष योगदान देती हैं। इसमें शामिल होना किसी कृति के अमूल्य और सार्वभौमिक महत्व को दर्शाता है।

ऋग्वेद समेत कई ग्रंथ पहले से शामिल
भारत की ओर से इससे पहले ऋग्वेद, तवांग धर्मग्रंथ और संत तुकाराम की अभंग रचनाओं से जुड़ी फाइलें भी इस सूची में स्थान पा चुकी हैं। खास बात यह है कि ऋग्वेद को 2007 में इस सूची में शामिल किया गया था। उस समय यूनेस्को ने इसे मान्यता देते हुए इसे मानव सभ्यता की शुरुआत की दार्शनिक और भाषाई बुनियाद करार दिया था।

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को नई उड़ान
श्रीमद्भगवद्गीता को विश्व का सर्वाधिक प्रभावशाली धार्मिक ग्रंथ माना जाता है, जबकि नाट्यशास्त्र ने भारत की नाट्य और नृत्य परंपरा की नींव रखी। इन दोनों ग्रंथों को वैश्विक स्तर पर मिली यह मान्यता भारतीय संस्कृति के गौरव को और ऊंचाई देने का कार्य करेगी।

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