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पीठ पर गाय लादकर जानलेवा रास्ता पार: सिरमौर के ग्रामीणों ने पेश की गौ-सेवा की अद्भुत मिसाल

Shailesh Saini | 30 जुलाई 2025 at 6:15 pm

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2 क्विंटल से अधिक वजनी बीमार गौ-माता को अस्पताल पहुंचाकर बचाई जान, हर तरफ हो रही सराहना

हिमाचल नाऊ न्यूज़ शिलाई

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से गौ-भक्ति और मानवीय साहस की एक अविस्मरणीय गाथा सामने आई है। यहां के दुर्गम क्यारी गुडाहां गांव में दो ग्रामीणों ने अपनी जान जोखिम में डालकर, 2 क्विंटल से अधिक वजनी एक बीमार गाय को पीठ पर लादकर टूटा-फूटा पहाड़ी रास्ता पार किया और उसे अस्पताल पहुंचाकर नया जीवन दिया।

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यह घटना उस सनातन भावना को चरितार्थ करती है, जहां गाय को सिर्फ माता कहा नहीं जाता, बल्कि उसकी सेवा भी सच्चे मन से की जाती है।यह बड़ी खबर सिरमौर के दुर्गम कुराई गांव की हैं, जहां दीपराम शर्मा की गाय कई दिनों से गंभीर रूप से बीमार थी।

पास का एकमात्र पशु चिकित्सालय तीन किलोमीटर दूर गुडाहां गांव में था। भारी बारिश के चलते गांव से अस्पताल तक का पहाड़ी रास्ता जगह-जगह से टूट चुका था, जिससे किसी भी वाहन का पहुंचना असंभव था। ऐसे में, बीमार गाय को समय पर इलाज मिल पाना एक बड़ी चुनौती बन गई थी।गौ-माता की जीवन बचाने के लिए गांव के दो सच्चे सपूत, दया राम और लाल सिंह, देवदूत बनकर सामने आए।

उन्होंने एक ऐसा असाधारण निर्णय लिया, जिसने सबको हैरत में डाल दिया। दोनों ग्रामीणों ने मिलकर 2 क्विंटल से अधिक वजनी गाय को रस्सियों की मदद से अपनी पीठ पर सावधानी से बांधा। यह कार्य सिर्फ शारीरिक बल का नहीं, बल्कि अदम्य इच्छाशक्ति और अटूट साहस का प्रमाण था।

बेहद खराब और फिसलन भरे पहाड़ी रास्ते पर चलना, जहां एक छोटी सी चूक भी जानलेवा दुर्घटना में बदल सकती थी, उन्होंने सधे और दृढ़ कदमों से आगे बढ़ते हुए रास्ते के टूटे हुए हिस्से को पार किया। गौ-माता के प्रति उनकी भक्ति और समर्पण ही था, जिसने उन्हें इस जानलेवा चुनौती का सामना करने की शक्ति दी।

आखिरकार, दोनों ग्रामीणों के अथक प्रयासों से गाय को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उसे तुरंत उचित इलाज मिला। अब गौ-माता पूरी तरह स्वस्थ है। ग्रामीणों के इस अद्वितीय प्रयास ने पूरे क्षेत्र में उन्हें सम्मान और सराहना का पात्र बना दिया है।

हर कोई उनके इस साहस, क्षमता और सच्ची गौ-सेवा की मिसाल को सलाम कर रहा है।गौ रक्षक किस का कहना है कि”गौ माता हमारी देवी है। उसकी जान बचाने के लिए हम कुछ भी कर सकते थे। यह सिर्फ हमारा फर्ज था।

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