कुसुम शर्मा ने भक्तों को बताया एकादशी व्रत का महत्व
HNN/ नाहन
निर्जला एकादशी के अवसर पर यशवंत विहार जड़जा के बाला सुंदरी मंदिर के पास शरबत की छबील सजाई गई। शरबत की यह छबील स्थानीय महिलाओं के द्वारा लगाई गई। निर्जला एकादशी के अवसर पर लगाई गई इस शरबत की छबील में सैकड़ो की तादाद में आने-जाने वाले यात्रियों ने ठंडा शरबत पिया।
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यही नहीं निर्जला एकादशी का महत्व जानने वाले कई श्रद्धालुओं के द्वारा अपने अपने घरों के समीप प्रमुख सड़क पर आने जाने वाले राहगीरों को ठंडा शरबत पिलाया गया। निर्जला एकादशी के महत्व को बताते हुए कुसुम शर्मा ने बताया कि यह व्रत बड़ा ही फलदाई होता है। उन्होंने बताया कि साल में 24 एकादशी व्रत होते हैं।
मगर साल में एक बार आने वाला निर्जला एकादशी का व्रत रखने मात्र से और व्रत रखने की जरूरत नहीं होती है। उन्होंने बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। वहीं दर्शना देवी ने बताया कि इस दिन सूर्य उदय से लेकर द्वादशी के सूर्य अस्त होने तक अन्न जल का त्याग किया जाता है।
मां बाला सुंदरी मंदिर की भगत कमलेश पिंकी विमला ने बताया कि इस दिन न केवल शरबत पिलाकर श्रद्धालुओं की प्यास बुझाई जाती है बल्कि दान स्वरूप जल से भरा घड़ा कपड़े से ढक कर दान देने का भी प्रावधान है। श्यामा देवी का कहना है कि व्रत रखने वाले व्यक्ति को सावधानी भी रखनी चाहिए की गलती से वह आचमन आदि का जल भी ना ग्रहण कर पाए।
यहां बता दें कि निर्जला एकादशी के व्रत को रखने की परंपरा महर्षि वेदव्यास के द्वारा की गई थी। महर्षि व्यास ने भीम को इस व्रत का महत्व बताया था। तभी से ये परंपरा चली आ रही है। निर्जला एकादशी पर शहर में जगह-जगह शरबत की छबील लगाई गई। लोगों के द्वारा मंदिरों में दान पूजन आदि भी किए गए।
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