HNN/ नाहन
प्रदेश के जिला सिरमौर में स्थित श्री रेणुका जी अंतरराष्ट्रीय रामसर वेटलैंड साइट जल्द ही जीव जंतु विज्ञानियों की खोज का बड़ा केंद्र बन सकता है। हिमाचल प्रदेश वाइल्डलाइफ के द्वारा सतयुग कालीन झील में दुर्लभ स्पीशीज का अंदेशा जताया जा रहा है। बड़ी बात तो यह है कि यह झील सदियों से धार्मिक महत्व के चलते पूरी तरह प्रोटेक्टिव भी है। धार्मिक महत्वता के चलते झील में स्थित किसी भी जीव जंतु को मारने पर सदियों से प्रतिबंध लगा हुआ है। जिसको लेकर अंदेशा जताया जा रहा है कि झील में मछलियों रेप्टाइल्स, टर्टल सहित कुछ ऐसे दुर्लभ जीव जंतु भी हो सकते हैं जिनका वजूद दुनिया से मिट गया हो।
बड़ी बात तो यह है कि वाइल्ड लाइफ विभाग के द्वारा झील के जीवो को संरक्षित करने के उद्देश्य से मछलियों को धार्मिक महत्व से डाले जाने वाले आटा और रस आदि पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया है। वाइल्डलाइफ डे धार्मिक महत्वता को समझते हुए मछलियों को दिए जाने वाले आटा आदि की जगह फिश फीड उपलब्ध कराने का जिम्मा भी उठाया है। विभाग के द्वारा संरक्षित झील क्षेत्र में इसके लिए चेतावनी साइन बोर्ड भी लगा दिए गए हैं। असल में वाइल्ड लाइफ अधिकारियों ने इस झील के इकोसिस्टम को बनाए रखने के लिए ऐसे प्रयास शुरू किए हैं।
बता दें कि यह संरक्षित क्षेत्र पर्यावास वन्यजीवों की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यवस्थित भोजन, पानी, आश्रय और स्थान का संयोजन होता है। इस पूरे वेटलैंड क्षेत्र को प्रवासी पक्षियों स्थानीय पक्षियों, रेप्टाइल्स मछलियां सहित अन्य जलचर जीवो और वन्यजीवों को आकर्षित करने के लिए संरक्षित किया जा रहा है। मौजूदा समय झील में गहरा तथा सिल्ट सहित घास, पेड़, पौधे आदि भी काफी मात्रा में लगे हुए हैं। इन सब का प्रोटेक्शन करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि यह सब वन्य तथा जलचर जीवों को आश्रय और भोजन प्रदान करता है।
वहीं, प्रदेश के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य नितेश शर्मा का कहना है कि मछलियों को आटा आदि डालने का प्रावधान चलते पानी में होता है। उन्होंने कहा कि श्री रेणुका जी झील में मछलियों को आटा डालना प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ता है। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए भी कहा कि धार्मिक महत्व भी बना रहे इसीलिए वाइल्ड लाइफ के द्वारा प्रोवाइड किए जाने वाला फिश फीड ही मछलियों को खिलाया जाना चाहिए।
बड़ी बात तो यह है कि देश के बड़े वैज्ञानिक संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉक्टर मीणा के द्वारा श्री रेणुका जी लेक की कोर सैंपलिंग भी की गई थी। जिसमें इस झील की अनुमानित उम्र भी 8 से 15000 वर्ष के बीच में बताई गई है। ऐसे में ना केवल धार्मिक महत्व के चलते बल्कि वैज्ञानिक महत्व के चलते भी यह पवित्र झील रिसर्च को लेकर बड़ा महत्व रखती है।
उधर, डीएफओ वाइल्डलाइफ रवि शंकर का कहना है कि इस वेटलैंड रामसर साइट का वैज्ञानिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। उन्होंने कहा कि झील में पाए जाने वाली अलग-अलग स्पीशीज का शोध कार्य जल्द शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कई लोगों ने उन्हें कुछ विशेष प्रकार के जीव झील में दिखने की बातें कहीं हैं। जिसको लेकर संभावनाएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं कि झील में कुछ दुर्लभ स्पीशीज भी हो सकती हैं।