राजगढ़ में लावारिस गोवंश की बढ़ती संख्या ने ट्रैफिक अव्यवस्था और दुर्घटनाओं का ग्राफ बढ़ा दिया है। न तो सरकारी योजनाएं असर दिखा रही हैं, न ही पंचायतें और प्रशासन ठोस कदम उठा रहे हैं। भूख, बीमारी और यातायात की चपेट में जान गंवाते ये बेजुबान पशु अब प्रशासनिक विफलता की जीवंत मिसाल बन चुके हैं।
राजगढ़
सड़कों पर मंडरा रहा जानलेवा खतरा
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बस स्टैंड से अस्पताल तक हर रास्ते पर गोवंश का कब्जा
राजगढ़ के पुराने और नए बस स्टैंड, हाबन मार्ग और अस्पताल क्षेत्र में लावारिस पशु झुंडों में घूमते देखे जा सकते हैं। ये पशु सड़कों के बीचों-बीच बैठ जाते हैं, जिससे ट्रैफिक बाधित होता है और दुर्घटनाएं आम हो गई हैं।
भूख, प्लास्टिक और फसलों की लाठियों का दंश
ये बेसहारा पशु कचरे और प्लास्टिक खाने को मजबूर हैं। फसलों में घुसने पर किसान इन्हें लाठियों से खदेड़ते हैं। बीमार या घायल होने पर इन्हें कोई सहायता नहीं मिलती, जिससे वे तड़पते हुए दम तोड़ देते हैं।
माइक्रोचिप योजना बनी दिखावा, पशु मालिक बेखौफ
पूर्व सरकार की माइक्रोचिप टैगिंग योजना धरातल पर कभी उतर नहीं सकी। आज भी लोग पशुओं के टैग निकालकर उन्हें खुले में छोड़ देते हैं। 25 वर्षों से यह समस्या बनी हुई है, लेकिन अब तक किसी पशु मालिक पर एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई।
गौशालाएं फुल, जिम्मेदारियां अधूरी
हरिओम गौशाला संचालक कपिल ठाकुर के अनुसार दोनों गौशालाएं 500 से अधिक पशुओं से पहले ही भर चुकी हैं। पशुपालन अधिकारी ने जिम्मेदारी प्रशासन पर डाल दी, जबकि नगर पंचायत अध्यक्ष ज्योति साहनी ने गौशालाओं से संपर्क का भरोसा दिया है।
जरूरी है ठोस समाधान और सख्त कार्रवाई
राजगढ़ की सड़कों पर भटकता लावारिस गोवंश प्रशासन की निष्क्रियता और योजनाओं की असफलता को उजागर कर रहा है। यह समस्या सिर्फ ट्रैफिक की नहीं, बल्कि एक मानवीय और सामाजिक चुनौती है, जिसका जल्द समाधान अनिवार्य है।
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