ना तो दिया गया था सदस्यता से रिजाइन और ना ही बनाई गई सिलेक्शन कमेटी
HNN/ शिमला
हिमाचल प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन में रचना गुप्ता की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर सवालिया निशान लग गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट देव आशीष भट्टाचार्य के द्वारा वर्ष 2013 के सलील सबलोक बनाम पंजाब लोक सेवा आयोग मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दी गई जजमेंट का हवाला देकर रचना गुप्ता की नियुक्ति को माननीय सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करार दिया है।
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यही नहीं आरटीआई एक्टिविस्ट के द्वारा वर्ष 2013 की सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पटनायक और मदन पी लाकूर की बेंच द्वारा दी गई जजमेंट का हवाला देते हुए चीफ जस्टिस हिमाचल हाई कोर्ट और गवर्नर हिमाचल प्रदेश को ई-मेल भी डाला गया है।
बता दें कि पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के द्वारा पंजाब पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन के सिलेक्शन को रद्द कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने यह कहा था कि यह सिलेक्शन आर्बिट्रेटर तरीके से किया गया है।
इस जजमेंट को लेकर पंजाब सरकार के द्वारा अपील की गई थी। जिस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन और मेंबर का सिलेक्शन संविधान के तहत होना चाहिए मगर संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है कि सिलेक्शन कैसे होना चाहिए।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट में यह भी कहा कि सरकार को इसका प्रोविजन करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि अब से पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन और मेंबर की सिलेक्शन के लिए प्रत्येक सरकार विधानसभा में भी कानून पास करवाएगी। यही नहीं जब तक यह विधानसभा में पास नहीं होता है तब तक सरकार एक साधन बनाए।
जिसके तहत सबसे पहले पब्लिक सर्विस कमीशन की पोस्टों का एडवर्टाइजमेंट करना होगा। साथ ही इसमें एक सिलेक्शन कमेटी भी बनानी पड़ेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इंफॉर्मेशन और चीफ इनफॉरमेशन कमिश्नर को सिलेक्ट करने के लिए सबसे पहले एडवर्टाइजमेंट की जाती है।
तो वहीं सिलेक्शन कमेटी में मुख्यमंत्री एक मंत्री तथा अपोजिशन का लीडर शामिल होगा। वर्ष 2013 की जजमेंट में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कहा था कि पब्लिक सर्विस कमीशन चेयरमैन का सिलेक्शन इसी तरीके से किया जाए।
तो बता दे कि जब यह आर्डर माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आए थे तो ठीक 60 दिनों के बाद प्रदेश में वीरभद्र सरकार के द्वारा मीरा वालिया की नियुक्ति भी ठीक इसी तरह की गई थी जैसे अब रचना गुप्ता की की गई है। उस दौरान भी मीरा वालिया की सिलेक्शन को लेकर मुख्यमंत्री और तत्कालीन प्रदेश के गवर्नर को माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना का हवाला देकर शिकायत दी गई थी।
इसी दौरान प्रदेश के एक एडवोकेट के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय हिमाचल प्रदेश में मीरा वालिया की सिलेक्शन को चैलेंज किया गया था। जिसमें अपील करता ने कहा था कि मीरा वालिया पर करप्शन का केस भी है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना भी की गई है।
सुनवाई के दौरान माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा पहला ग्राउंड यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि मीरा वालिया करप्शन के आरोपों से बरी हो चुकी है। तो दूसरे ग्राउंड के आधार पर माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा स्टेट गवर्नमेंट को यह कहा गया था कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को तुरंत इंप्लीमेंट भी किया जाए।
वही रचना गुप्ता की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर ना तो प्रदेश सरकार के द्वारा कोई बिल पास किया गया और ना ही माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को इंप्लीमेंट किया गया। हैरानी तो इस बात की भी है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद ना तो रचना गुप्ता के द्वारा पब्लिक सर्विस कमीशन में सदस्य पद से रिजाइन किया गया था और संभवत चेयरमैन पद के लिए अप्लाई किया गया होगा।
क्योंकि यहां यह भी बताना जरूरी है कि पब्लिक सर्विस कमीशन में पद प्रमोशन नहीं होती है। बता दें कि आज ही गवर्नर के द्वारा नई सिलेक्टेड बॉडी को शपथ दिलाई जानी थी। मगर अब देखना यह होगा कि क्या प्रदेश सरकार माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को मानती है या नहीं।
क्योंकि आरटीआई एक्टिविस्ट देव अशीष भट्टाचार्य का कहना है कि यदि प्रदेश सरकार माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करती है तो वह माननीय सुप्रीम कोर्ट में रिट भी डालेंगे। जाहिर है रचना गुप्ता की नियुक्ति को लेकर फिर से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। उनकी नियुक्ति अब संकट में पड़ती नजर आ रही है।
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