Featured News

कश्मीरी चिलगोजा की एंट्री के साथ चिलगोजा के दाम में आई गिरावट

HNN/किनौर

देश में बेहतर किस्म के चिलगोजा उत्पादन में पहचान बनाने वाले किनौर जिला में इस बार बंपर फसल हुई है। बायो ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के रूप में पहचाने जाने वाले किन्नरी चिलगोजा का उत्पादन इस बार 2500 कुंतल से ऊपर जा चुका है। मौके से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस वर्ष का उत्पादन 3000 क्विंटल का आंकड़ा पार कर सकता है। कल्पा गांव के चिलगोजा उत्पादक भद्र सुख नेगी ने बताया कि प्रदेश सरकार के सहयोग से वन संपदा में शामिल पाईन नट के पेड़ नीलामी में संतुलित कीमतों पर मिले हैं।उन्होंने बताया कि उनके पास जहां अपने निजी 5 -10 पेड़ हैं वही नीलामी में उन्हें अच्छे खासे नियोजा से भरे पेड़ मिले हैं। उन्होंने बताया कि पाइन ट्री के शंकुओं से पाइन नट यानी चिलगोजा निकले जाने का काम जोर शोर से चला हुआ है। बार उनके पास 7 क्विंटल से अधिक चिलगोजे का उत्पादन हुआ है।

वही नैन सुख नेगी, जीवन नेगी, आदि का कहना है कि इस बार जंगी सहित पूरे किन्नौर से करीब 2500 कुंतल से भी अधिक चिलगोजा निकाला जा चुका है।वही रिकांगपिओ के प्रमुख व्यापारी जिन्हें मालदार के नाम से जाना जाता है उन्होंने बताया कि चिलगोजा का रेट 22 से ₹2500 चला हुआ है। मगर वही चिलगोजा का व्यापार करने वाले किसानों का कहना है कि मार्केट में अधिक फसल होने के कारण उन्हें 1500 से1600 रुपए प्रति किलो से अधिक दम नहीं मिल पा रहे हैं। इन व्यापारियों का कहना है कि कम दाम होने से उनका लेबर का खर्च भी पूरा नहीं हो पा रहा है।


क्या है चिलगोजा
चिलगोजा को नियोजा नूसा, नेजा, पाइन नट आदि के नाम से जाना जाता है। शंकु से निकाले गए इस फल में विटामिन ए डी के साथ लूटीन प्रचुर मात्रा में होता है जो की हड्डियों को मजबूती देता है। यही नहीं हार्ट के रोगियों के लिए इसे एक बेहतर सप्लीमेंट माना गया है जिसमें मोनो अनसैचुरेटेड वसा होती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी यह ड्राई फ्रूट अनमोल माना जाता है यही नहीं शुगर के रोगियों के लिए तो यह जबरदस्त दवा मानी गई है। इसमें एंटी डायबिटिक गुण होते हैं जिससे यह शरीर में इंसुलिन की मात्रा को बढ़ाने में मददगार भी साबित होता हैचिलगोजा पोषक तत्व तथा खनिजों का एक अच्छा खासा स्रोत है साथ ही यह यहां के किसने की आर्थिक का भी एक अतिरिक्त संसाधन है।

हिमाचल प्रदेश में चिलगोजा चंबा पांगी और किन्नौर में पाया जाता है। हालांकि कुछ लोगों के खेतों में भी यह प्राकृतिक रूप से उगा हुआ है मगर अधिकतर नियोजा के पेड़ वन संपदा है जिसे किसानों के लिए हर वर्ष आक्शन किया जाता है।अक्टूबर माह में इसे पेड़ों से तोड़ा जाता है तोड़े गए शंकुओं को महिलाएं किल्टे में ठोकर लाती हैं। खेत में या घर की छत पर सभी महिलाएं सामूहिक रूप से बैठकर शंकु को तोड़ इसके बीच में से चिलगोजा निकलते हैं। शंकु में से चिपचिपा गोंद जैसा पदार्थ निकलता है जिससे बचने के लिए हाथों में सरसों का तेल लगाया जाता है।

शंकु को तोड़कर उसमें से चिलगोजा निकालना बहुत ही कठिन परिश्रम का कार्य है। निकल गए चिलगोजे को इकट्ठा कर इसे मार्केट में बेचे जाने के लिए भेजा जाता है। चिलगोजे के फल को निकालने के लिए इसे छीला जाता है। निकल गए बीजों को यानी चिलगोजा को भूनकर अथवा कच्चा भी खाया जाता है। हालांकि यह एक उत्तम क्वालिटी का गुणवत्ता से भरपूर ड्राई फ्रूट है मगर कुछ लोगों को यह शूट भी नहीं करता है। अधिक मात्रा में खाने पर डाइजेशन अथवा जलन का रोग हो सकता है। बता दे की जिन शंकु में से चिलगोजा निकाल लिया जाता है वह फिर ईंधन के काम आते हैं।

Share On Whatsapp