HNN/ शिमला
19 वर्षों के अंतराल के उपरांत इस बार जुन्गा में जिला स्तरीय दशहरा उत्सव में लंका दहन नहीं किया गया। इससे पहले यह रिवायत वर्ष 2003 में तत्कालीन रियासत के राजा हितेन्द्र सेन के निधन के कारण टूटी थी। बता दें कालांतर से रियासतकालीन शासकों द्वारा जुन्गा में परंपरा के अनुसार लंका दहन किया जाता रहा है। इस बार तत्कालीन क्योंथल रियासत के राजा वीर विक्रम सेन के असमायिक निधन के शोक के चलते इस बार लंका दहन नहीं किया गया।
जबकि सरकार द्वारा जुन्गा दशहरा मेले को जिला स्तरीय दर्जा प्रदान किया गया है। देव जुन्गा के प्रमुख रामकृष्ण मेहता का कहना है कि क्योंथल रियासत में अतीत से जुन्गा देवता के 22 टीका अर्थात देवता की पूजा की जाती है। जोकि क्योंथल रियासत के राजा के अधीन माने जाते हैं। देव संबधी कार्यों में राजा का निर्णय आज भी प्रमुख माना जाता है।
गौर रहे कि बीते माह तत्कालीन क्योंथल रियासत के 78वें शासक राजा वीर विक्रम सेन का निधन हुआ था जिसके चलते समूचे क्योंथल क्षेत्र में एक वर्ष तक शोक रखा गया है इस दौरान क्षेत्र में कोई भी देव संबधी कार्य व उत्सव पर प्रतिबंध लगाया गया है। वरिष्ठ नागरिक राम कृष्ण मेहता ने बताया कि कालांतर से ही क्योंथल रिसायत के शासक को देवता स्वरूप माना जाता हैं अर्थात देव परंपरा में राजा को लोग अपना चौथा इष्ट मानते हैं।
यह परंपरा वर्तमान में भी कायम है। इसी वजह से इस बार जुन्गा में दशहरा उत्सव भी नहीं मनाया गया। राजपरिवार के सदस्य पंकज सेन ने बताया कि अतीत से ही दशहरा के दौरान राजमहल से रघुनाथ की छड़ी यात्रा ढोल नगाड़ें के साथ मेला मैदान में लाई जाती है। जहां पर लोग रघुनाथ का आर्शिवाद प्राप्त करते हैं। परंपरा के अनुसार सांय को क्योंथल रिसासत के राजा द्वारा रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुलते को आग लगाकर लंका दहन किया जाता है। उसके उपरांत रघुनाथ की पालकी को वापिस राजमहल ले जाया जाता है।