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सिरमौर के किसानों की तकदीर बदलने के लिए ‘गजेंद्र’ जिमीकंद ने अपनी सफलता की करी पुष्टि

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प्राकृतिक खेती के तहत मिला बीज, किसान बने लखपति, बड़ी सफलता की कहानी के साथ…………

सिरमौर

जिला सिरमौर के किसानों की तकदीर बदलने के लिए गजेंद्र किस्म के जिमीकंद ने अपनी सफलता की पुष्टि करदी है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आत्मा प्रोजेक्ट के तहत मुफ्त में उपलब्ध कराए गए जिमीकंद के बीज ने किसानों को लखपति बना दिया है। सफलता की कहानी कुछ इस प्रकार से है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जिला सिरमौर आत्मा प्रोजेक्ट के तहत विभाग के द्वारा ₹100 प्रति किलो के हिसाब से ₹28,000 का गजेंद्र किस्म के जिमीकंद का बीज केवीके बरर्ठी से खरीदा गया था। इसमें से नाहन विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत ढाक वाली गांव के किसान प्रवीण कुमार को 60 किलो बीज दिया गया। यह पहला डेमोंसट्रेशन था जिसमें किसान के द्वारा 60 किलो गजेंद्र जिमीकंद का बीज मात्र 5 बिस्वा जमीन में लगाया गया। आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि मात्र 6 महीने की इस फसल के बाद किसान ने 90 हजार से अधिक रूपयों का लाभ अर्जित किया। इसी प्रकार नाहन के गणेश का बाग की किसान उमा देवी, बेहड़ी वाला के किसान सोमीनाथ, जाबल के बाग निवासी किसान प्रवीण ने भी अपनी मात्र कुछ बिस्वा जमीन में ही लगाए गए बीज का 8 गुना उत्पादन मात्र 6 से 7 महीने में किया है।

बताना जरूरी है कि हिमाचल प्रदेश में जिमीकंद शादी ब्याह व अन्य सामूहिक भोज कार्यक्रमों में प्रमुखता से बनाई जाती है। सिरमौर में तो जिमीकंद की सब्जी के बगैर दी गई धाम अधूरी मानी जाती है। मगर जो जिमीकंद अभी सिरमौर में इस्तेमाल किया जाता है उसमें कैल्शियम ऑक्सलेट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।

आत्मा प्रोजेक्ट के निदेशक डॉक्टर साहब सिंह का कहना है कि जो जिमीकंद लोकल कहकर या पहाड़ी जिमीकंद कहकर इस्तेमाल किया जा रहा है उससे गुर्दे की पथरी बनती है यही नहीं इससे मुंह में जलन और श्वास रोग भी होता है। जबकि वैज्ञानिकों के द्वारा उच्च शोध के बाद तैयार की गई गजेंद्र नस्ल का जिमीकंद न केवल किसानों के लिए संजीवनी बल्कि खाने वालों के लिए भी गुणकारी औषधीय सब्जी है। किसानों को इसकी फसल का सबसे बड़ा फायदा बंदरों से नुकसान का होता है। इस जिमीकंद अथवा सूरन को बंदर बिल्कुल भी नहीं खाते। आत्मा प्रोजेक्ट के खंड तकनीकी प्रबंधक सुरेश कुमार ने बताया कि इस गजेंद्र किस्म के जिमीकंद को मई महीने में लगाया जाता है और नवंबर महीने में इसकी जमीन से खुदाई शुरू कर दी जाती है। उन्होंने बताया कि डेमो प्रोजेक्ट में एक 300 ग्राम का पीस लगाया गया था जिससे 4 किलो का जिमीकंद प्राप्त हुआ था।

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‘गजेंद्र’ का भविष्य: व्यापक विस्तार और मूल्य संवर्धन

सिरमौर के किसानों की यह सफलता अब पूरे हिमाचल के बागवानी क्षेत्र के लिए एक ठोस मॉडल बन चुकी है। राज्य कृषि विभाग, किसानों के उत्साहजनक परिणामों को देखते हुए, अब प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत ‘गजेंद्र’ किस्म को व्यापक रूप से बढ़ावा देने की रणनीति बना रहा है। इस किस्म की 80 से 100 टन प्रति हेक्टेयर तक की उच्च उत्पादन क्षमता इसे एक बेहद लाभदायक नकदी फसल बनाती है। विभाग का मुख्य उद्देश्य राज्य के उन क्षेत्रों तक भी इस बीज की उपलब्धता सुनिश्चित करना है, जहां जंगली जानवरों का आतंक खेती को मुश्किल बना रहा है। साथ ही, किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण और बाजार से सीधा लिंक प्रदान करने पर भी जोर दिया जाएगा।

नए उत्पादों से आय में वृद्धि

‘गजेंद्र’ जिमीकंद की खुजली-मुक्त विशेषता ने इसके लिए मूल्य संवर्धन (Value Addition) के शानदार रास्ते खोल दिए हैं। किसान अब इसे केवल कच्ची सब्जी के रूप में बेचने के बजाय, इसे संसाधित (processed) उत्पादों जैसे जिमीकंद चिप्स, अचार, या औषधीय पाउडर के निर्माण पर विचार कर सकते हैं। संसाधित उत्पादों का बाजार मूल्य कच्चे जिमीकंद की तुलना में काफी अधिक होता है, जिससे किसानों की आय कई गुना बढ़ सकती है। यह पहल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी, बल्कि हिमाचल के पारंपरिक व्यंजनों को भी नई पहचान देगी।

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