हर साल इस कलयुग में भी होता है यहां यह बड़ा चमत्कार
हिमाचल नाऊ न्यूज़ सरांहा (सिरमौर)।
हिमाचल प्रदेश की देवभूमि में आस्था और चमत्कार का संगम एक बार फिर देखने को मिला। जिला सिरमौर के पच्छाद उपमंडल के आराध्य देव भूर्शिंग देवता का वार्षिक देव ग्यास पर्व पारंपरिक श्रद्धा और अनोखी देव परंपराओं के साथ मनाया गया।
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शनिवार को भूर्शिंग महादेव देवस्थली पजेली से कथाड़ कवागधार मंदिर तक निकाली गई शोभायात्रा में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया, जहाँ की परंपराएँ सदियों पुराना इतिहास और अटूट आस्था समेटे हुए हैं।
पालकी नहीं, सीधे पुजारी रूप में चलते हैं देवता
इस देवस्थान की सबसे बड़ी और विलक्षण परंपरा यह है कि भूर्शिंग महादेव अन्य देवताओं की तरह पालकी में विराजमान होकर नहीं चलते, बल्कि सीधे देवशक्ति पुजारी के भीतर प्रवेश करती है।
पुजारी अपने पारंपरिक श्रृंगार (बाणा) से सुसज्जित होकर साक्षात् देवता रूप में, वाद्य यंत्रों की पवित्र धुनों के बीच, लगभग अढ़ाई किलोमीटर (एक कोस) की खड़ी चढ़ाई चढ़कर पैदल ही मंदिर (मोड़) तक पहुँचते हैं।
यह यात्रा भक्तों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं होती।दूध की धार और छत्र का महत्वदेवस्थली पूजारली (पजेली) में देवता का विशेष श्रृंगार किया जाता है। उन्हें वह पारंपरिक पगड़ी पहनाई जाती है, जिसमें देवता का छत्र जड़ा होता है। ग्यास पर्व पर होने वाले इस विशेष देव उत्सव में दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होने के लिए पहुँचते हैं।
आस्थावानों की मौजूदगी में, देवता एक कोस की चढ़ाई चढ़ते हुए रास्ते में चिन्हित सात पवित्र स्थानों पर दूध की धार चढ़ाते हैं। मोड़ में पहुँचते ही आठवीं और अंतिम दूध की धार एक प्राचीन शिला पर अर्पित की जाती है, जिसके बाद ही देवता मंदिर में प्रवेश करते हैं।
मंदिर में पहुँचकर पगड़ी में जड़े इस पवित्र छत्र को उतारकर स्वयंभू शिवलिंग-पिंडी पर सजा दिया जाता है।स्वयंभू शिवलिंग पर शक्ति परीक्षणमंदिर में प्रवेश के बाद, एक विशेष परंपरा के तहत 22 उप गौत्रों द्वारा आगे की रस्में पूरी की जाती हैं।
मुख्य कारदार पोलिया इन रस्मों को संपन्न करवाते हैं। इस दौरान चांवरथीया उपगौत्र-खेल के कारदार शक्ति परीक्षण के लिए देवता को जलती हुई बत्ती देते हैं, जिसे देवता मुंह में लेते हैं। कारदार अपने कुल देवता के ऊपर चांवर (चमर) झुलाता है, इसीलिए इस उपगौत्र का नाम चांवरथिया पड़ा।
महाभारत और भूरीश्रृंग का इतिहास
भूर्शिंग महादेव मंदिर कथाड़ (क्वागधार) स्वयंभू शिवलिंग की उत्पत्ति के कारण अत्यंत पवित्र माना जाता है। लोकमान्यताओं के अनुसार, कथाड़ (क्वागधार) पर्वत शिखर पर बैठकर भगवान शिव और माता पार्वती ने महाभारत का युद्ध देखा था। विश्वनाथ और केदारनाथ के इतिहास में उल्लेखित यह स्वयम्भू लिंग, जो कालांतर में भूरीश्रृंग और दुग्धाहारी भूर्शिंग के नाम से विख्यात हुआ, आज भी शिवलिंग शिला के रूप में विराजमान है।हजारों श्रद्धालु कच्चा दूध चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करते हैं।
रात्रि में होता है एक विचित्र चमत्कार
भूर्शिंग महादेव की देव परंपरा गोपनीय शाबरी मंत्र और पारंपरिक धूप-दीप पूजा के कारण एकदम निराली है। यहाँ हर वर्ष दीपावली के बाद ग्यास को देव उत्सव मनाया जाता है। घुप अंधेरे और कंपकपाती ठंड के बीच, रात्रि में देवता एक विचित्र चमत्कार करते हैं।
वह एक ऐसी शिला पर न केवल छलांग लगाते हैं, बल्कि करवटें भी बदलते हैं, जो पहाड़ में तिरछी लटकी हुई है। देव उत्सव की शुरुआत दीपावली के साथ ही हो जाती है, जिसके तहत जगह-जगह जागरण व करियाला का आयोजन होता है, और दशमी व ग्यास को मंदिर में भव्य मेले का आयोजन होता है।
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