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भारत में 3 कफ सिरप पर WHO की गंभीर चेतावनी: जहरीली दवाओं से मौतें और दवा नियामक प्रणाली पर सवाल

Shailesh Saini | 15 अक्तूबर 2025 at 6:25 am

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शैलेश सैनी हिमाचल नाऊ न्यूज़

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत में निर्मित तीन कफ सिरप को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है, जिससे दवा सुरक्षा प्रणाली पर एक बार फिर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं।

श्रीसन फार्मास्यूटिकल की कोल्ड्रिफ, रेडनेक्स फार्मास्यूटिकल्स की रेस्पिफ्रेश टीआर और शेप फार्मा की रीलाइफ नामक इन सिरप को ‘मिलावटी’ बताते हुए डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि ये जानलेवा साबित हो सकते हैं और गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक स्तर पर इन दवाओं की उपलब्धता की जानकारी मांगी है।

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कोल्ड्रिफ सिरप:

25 बच्चों की मौत का जिम्मेदार कोल्ड्रिफ सिरप का नाम विशेष रूप से चिंता का विषय है, क्योंकि इसी सिरप के कारण मध्य प्रदेश में सितंबर से अब तक 5 साल से कम उम्र के 25 बच्चों की मौत हो चुकी है।

जांच में पाया गया कि इस सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (Diethylene Glycol) की मात्रा तय सीमा से लगभग 500 गुना अधिक थी, जो बच्चों की मौत का कारण बनी।

डब्ल्यूएचओ ने 9 अक्टूबर को भारत से यह स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या यह जहरीला सिरप विदेशों में भी निर्यात किया गया था। भारत की दवा निर्माण नियामक अथॉरिटी ने जवाब में कहा कि ऐसी कोई दवा बाहर नहीं भेजी गई है और न ही अवैध निर्यात का कोई सबूत मिला है।

कंपनी का लाइसेंस रद्द, मालिक गिरफ्तार

तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित श्रीसन फार्मास्युटिकल कंपनी, जो कोल्ड्रिफ सिरप का निर्माण कर रही थी, का लाइसेंस तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट ने रद्द कर दिया है।

कंपनी को स्थायी रूप से बंद करने के आदेश दिए गए हैं। कंपनी के 75 वर्षीय मालिक रंगनाथन गोविंदन को 9 अक्टूबर को चेन्नई से गिरफ्तार कर 10 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। यह गिरफ्तारी मध्य प्रदेश पुलिस की एक विशेष जांच टीम ने की है।

उठते सवाल:

दवा नियामक प्रणाली की खामियां और ‘ईमानदारी की सज़ा’यह घटना भारत की दवा नियामक प्रणाली की गहरी खामियों को उजागर करती है।

एक ओर जहां सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (CDSCO) द्वारा ‘रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन‘ चलाए जा रहे हैं, वहीं यह गंभीर सवाल उठता है कि दवा उद्योगों में काम करने वाले फार्मासिस्टों की योग्यता, अनुभव और उनके प्रशिक्षण की कोई समुचित जांच क्यों नहीं की जा रही है?

देशभर में लगातार ‘सब-स्टैंडर्ड’ दवाएं पाई जाती हैं, लेकिन अक्सर केवल उस विशेष बैच को ही उठाया जाता है, जिससे समस्या उत्पन्न हुई है, न कि पूरे उत्पादन और गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली की जड़ तक जाया जाता है।

यह एक गंभीर चूक है।सबसे बड़ा सवाल उन ईमानदार अधिकारियों की स्थिति पर है जो दवा माफिया के सामने झुकने से इनकार करते हैं। दवा उद्योग, अपने विशाल वित्तीय संसाधनों के साथ, अक्सर ऐसे ईमानदार अधिकारियों को षड्यंत्रों में फंसाकर जांच एजेंसियों की तलवार उन पर चलवाने से नहीं हिचकते।

हिमाचल प्रदेश के असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर निशांत सरीन का मामला इसका ताजा उदाहरण है। वही दवा उद्योगपति, जिनकी दवाएं कई बार ‘सब-स्टैंडर्ड’ पाई जा चुकी हैं और जिन्हें उच्च न्यायालय से भी फटकार मिल चुकी है, उनके अनुरूप काम न करने पर एक ईमानदार ड्रग अधिकारी को अपनी ईमानदारी की ‘सजा’ मिल रही है।

यह पूरी घटना केवल एक सिरप के मिलावटी होने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की दवा नियामक प्रणाली में व्याप्त गहरे संकट और उन नैतिक चुनौतियों को भी उजागर करती है, जिनका सामना ईमानदार अधिकारी कर रहे हैं।

इन जहरीली दवाओं के कारण हुई बच्चों की मौतों के बाद, अब वक्त आ गया है कि सरकार और नियामक एजेंसियां केवल सतह पर कार्रवाई न करें, बल्कि समस्या की जड़ तक जाएं और एक ऐसी प्रणाली बनाएं जो वाकई में नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा कर सके।

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