पच्छाद का ऐतिहासिक वामन द्वादशी मेला इस बार धार्मिक आयोजन से ज्यादा राजनीतिक विवादों का केंद्र बन गया। कांग्रेस सरकार के राज में स्थानीय भाजपा विधायक और सांसद को निमंत्रण न देने से यह आयोजन विवादों में घिर गया।
सरांहा
प्रशासनिक प्रोटोकॉल टूटा, राजनीति हावी रही
लोगों का कहना है कि राज्य स्तरीय मेले में भाजपा जनप्रतिनिधियों को न बुलाना सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि सत्ता की ओर से राजनीतिक प्रतिशोध का संकेत है। कैबिनेट मंत्रियों की अनुपस्थिति ने भी यह साफ कर दिया कि यह आयोजन केवल औपचारिकता तक सीमित रह गया।
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हारी प्रत्याशी मंच पर हावी, कांग्रेस की फूट उजागर
इस बार का मंच भाजपा की अनुपस्थिति से खाली नहीं, बल्कि कांग्रेस की हारी हुई प्रत्याशी दयाल प्यारी के दबदबे से भरा रहा। चुनाव हारने के बावजूद उनका वर्चस्व साफ दिखा, जिससे कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी भी सामने आ गई। वहीं, पूर्व विधायक जीआर मुसाफिर अपने समर्थकों के बीच पहले से ज्यादा मजबूत दिखाई दिए।
आस्था और संस्कृति पीछे, राजनीतिक चमक-दमक आगे
स्थानीय लोगों का मानना है कि जब मेला मंदिर कमेटी के हाथों में था, तब भक्ति और आस्था का भाव प्रमुख होता था। लेकिन राज्य स्तरीय दर्जा मिलने के बाद यह मंच राजनीतिक प्रदर्शन और महंगे प्लाट आवंटन का जरिया बनकर रह गया। व्यापारी घाटे में रहे और आम जनता को खरीदारी में महंगाई झेलनी पड़ी।
मेले की गरिमा पर सवाल
कुल मिलाकर, इस बार का वामन द्वादशी मेला आस्था और संस्कृति से ज्यादा कांग्रेस की गुटबाजी, प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक विद्वेष का उदाहरण बनकर सामने आया।
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