मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि सतत वनीकरण, पारिस्थितिक पुनर्स्थापन और जनसहभागिता आधारित प्रयासों से प्रदेश के वन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है। पिछले दो दशकों में हिमाचल का वन क्षेत्र 14,353 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 15,580 वर्ग किलोमीटर से अधिक हो गया है।
शिमला
वन क्षेत्र में 28 प्रतिशत तक हुई वृद्धि
मुख्यमंत्री ने बताया कि भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2003 में हिमाचल का कुल वन क्षेत्र 25.73 प्रतिशत था, जो अब 28 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसी अवधि में वृक्ष क्षेत्र भी 491 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 855 वर्ग किलोमीटर हो गया है।
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जनसहभागिता से संभव हुआ हरित विस्तार
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह उपलब्धि सरकार की योजनाओं, व्यापक पौधरोपण अभियानों और स्थानीय समुदायों, महिला मंडलों व स्वयं सहायता समूहों की सक्रिय भागीदारी से संभव हुई है। इन संस्थाओं को पांच हेक्टेयर तक के बंजर या क्षतिग्रस्त वन क्षेत्र को विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है, जिसके लिए प्रति हेक्टेयर 1.20 लाख रुपये तक की सहायता राशि उपलब्ध करवाई जाएगी।
स्थानीय प्रजातियों और जलागम प्रबंधन पर विशेष ध्यान
उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार स्थानीय प्रजातियों के पुनर्स्थापन, उन्नत नर्सरी तकनीकों और जलागम आधारित भूमि प्रबंधन पर केंद्रित है। इससे वनस्पति घनत्व और जैव विविधता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
संयुक्त वन प्रबंधन से मिली नई दिशा
संयुक्त वन प्रबंधन और नई भागीदारी आधारित पुनर्स्थापन योजनाओं से ग्रामीणों को वन संसाधनों का स्वामित्व और आर्थिक लाभ दोनों प्राप्त हुए हैं। इससे पारिस्थितिक सुरक्षा के साथ-साथ आजीविका के नए अवसर भी सृजित हुए हैं।
वन संरक्षण से सुदृढ़ हुई पारिस्थितिकी और संस्कृति
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल के वन न केवल जलागम क्षेत्रों का निर्माण करते हैं, बल्कि उत्तरी भारत की प्रमुख नदियों को जल प्रदान करते हैं। ये क्षेत्र कृषि उत्पादकता बनाए रखते हैं, जलवायु नियंत्रित करते हैं और प्रदेश की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक परंपराओं को भी सशक्त करते हैं।
ग्रीन इंडिया मिशन के अनुरूप प्रयास जारी
उन्होंने बताया कि हिमाचल की यह उपलब्धि वैज्ञानिक वन प्रबंधन और नीति-निष्ठा का परिणाम है। राज्य का ध्यान जैव विविधता संरक्षण, जलवायु अनुकूल पारिस्थितिकी और ग्रीन इंडिया मिशन के तहत राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की दिशा में सतत बना हुआ है।
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