HNN / नाहन
वीरवार को दलित शोषण मुक्ति मंच का एक प्रतिनिधिमंडल डिप्टी डायरेक्टर ऑफ जनरल मनोज कुमार व केंद्रीय समाजिक न्याय एवम अधिकारिता राज्य मंत्री रामनाथ अठावले से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने उनके नई दिल्ली स्थित कार्यालय मे मुलाकात की तथा उन्हे “हाटी” जनजातीय क्षेत्र घोषित होने से इस क्षेत्र मे रहने वाले 40% अ०जा० वर्ग के ऊपर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से अवगत करवाया।
आशीष कुमार संयोजक दलित शोषण मुक्ति मंच सिरमौर , राजू राम व लायक राम ने वर्ष 2017 की रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को पेश कर मंत्री को अवगत करवाया कि आरजीआई ने अपनी रिपोर्ट मे यह स्पष्ट कहा है कि “हाटी” कोई जनजाति नही है तथा इसे संविधान के अधिनियम 342 (2) के अन्तर्गत संवैधानिक दर्जा नही दिया जा सकता है। आरजीआई ने अपनी रिपोर्ट मे यह भी कहा था कि “हाटी ” समुदाय कोई एक सामाजिक इकाई नहीं है। उन्होंने मंत्री को “हाटी”जनजाति घोषित करने से गिरी पार क्षेत्र मे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम ,1989 के निष्क्रिय होने के खतरे के बारे मे आगाह किया।
उन्होने वर्ष 2015 से 2022 तक जिला सिरमौर मे एट्रोसिटी एक्ट के मामलों की रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि अब तक जिला सिरमौर मे कुल 122 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमे से हत्या व बलात्कार के जघन्य मामलों सहित कुल 106 मामले इसी गिरी पार क्षेत्र के हैं। दलित शोषण मुक्ति मंच ने शंका जाहिर करते हुए इस बात का खतरा जताया कि यदि गिरी पार की तमाम जातियों को “हाटी” जनजाति घोषित करके एक ही छतरी के नीचे लाया गया तो अनुसूचित जाति एवं ओबीसी वर्ग को पंचायती राज संस्थाओं मे प्राप्त संवैधानिक आरक्षण समाप्त हो जाएगा।
जिसका उदाहरण उन्होने किन्नौर जिला मे 2020 के पंचायती राज चुनावों मे उपायुक्त किन्नौर द्वारा जारी पंचायत रोस्टर को पेश कर दिया। जिसमे जिला किन्नौर की समस्त 73 पंचायतों मे प्रधान पद केवल अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। दलित शोषण मुक्ति मंच ने केन्द्र सरकार से मांग रखी कि गिरीपार की 40% अ०जा० के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की जाए व जल्दबाजी मे जनजातीय क्षेत्र घोषित कर अनुसूचित जाति वर्ग के कत्लेआम का लाइसेन्स न दिया जाए। जिस पर केन्द्रीय मंत्री और डिप्टी रजिस्टरार जनरल द्वारा उन्हे आश्वासन दिया गया कि इस मामले मे कोई भी अंतिम निर्णय लेने से पूर्व सभी पक्षों का ध्यान रखा जाएगा।