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Exclusive Report By: Shailesh Saini

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डलहौजी वन मंडल की अनूठी पहल: जन सहयोग से जंगल की आग पर काबू और जैव विविधता का विस्तार

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वन संरक्षण में जनसहयोग से नया मॉडल : जैव विविधता बढ़ाने और आग रोकने की अनूठी पहल

डलहौजी

फलदार पौधों की नर्सरी से आजीविका, चीड पत्तियों से चेक डैम और वन संरक्षण में जन भागीदारी

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डलहौजी वन मंडल ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अभिनव पहल करते हुए सामुदायिक सहयोग से जंगलों की आग रोकने और जैव विविधता बढ़ाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं।

वन अग्नि रोकथाम में जनसहभागिता
वनों में आग की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए डलहौजी वन मंडल ने ग्रामीण वन प्रबंधन समितियों की मदद से वृक्षारोपण क्षेत्रों से चीड की पत्तियों को हटाया है। पिछले दो वर्षों में जहां-जहां जंगल की आग से नुकसान हुआ, वहां देसी बीजों की बुआई की गई और उच्च आर्द्रता वाले इलाकों में सैलिक्स प्रजातियों के पोल लगाए गए हैं। इसके अलावा चीड की पत्तियों से जंगल के भीतर जूट की रस्सियों की सहायता से 171 चेक डैम बनाए गए, जिससे नालों को स्थिर करने और मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिली।

जैव विविधता बढ़ाने की दिशा में नर्सरी विकास
डीएफओ रजनीश महाजन के अनुसार नर्सरी में स्थानीय प्रजातियों जैसे लसूड़ा, अखरोट, आंवला, रीठा, दारू, हरड़ और बेहड़ा को उगाने पर ध्यान दिया जा रहा है। इनमें लसूड़ा को तैयार करना चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन इसके लिए बागवानी प्रशिक्षण केंद्र जाच्छ से श्रमिकों को विशेष प्रशिक्षण दिलाया गया। बाजार में इसकी कीमत और उत्पादन क्षमता को देखते हुए यह ग्रामीणों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत बन सकता है।

आग प्रतिरोधी प्रजातियों पर भी जोर
डलहौजी वन मंडल ने कैंथ, खजूर, दाडू, फगुड़ा, अमलताश, टोर और त्रैम्बल जैसी अग्निरोधक प्रजातियों को भी नर्सरियों में तैयार किया है, जो चीड के जंगलों में भी टिकाऊ रहती हैं। जैव विविधता के संरक्षण हेतु पीपल, बरगद, रूम्बल और पलाख जैसे 30,000 से अधिक पौधे रूट ट्रेनर तकनीक से उगाए गए हैं। इन्हें राजमार्गों के किनारे फाइकस वन के रूप में लगाया जाएगा, जो पर्यावरण के साथ-साथ पक्षियों के लिए भी लाभकारी रहेंगे।

तकनीकी उन्नयन से गुणवत्ता में सुधार
नर्सरियों को जैवविविधता नर्सरी का नाम देकर आधुनिक तकनीकों जैसे कोको पीट और वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे पौधों की जड़ों का विकास बेहतर हो रहा है और नमी भी लंबे समय तक बनी रहती है। यह सभी प्रयास वन संरक्षण, आजीविका सृजन और सामुदायिक सहभागिता की मिसाल बन रहे हैं।

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