HNN / धर्मशाला
कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लिए सभी की सहभागिता जरूरी है, कुष्ठ रोग के भेदभाव को समाज से मिटाने के लिए सभी को सहयोग करना चाहिए। यह उद्गार मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा गुरदर्शन गुप्ता ने राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत चिकित्सा अधिकारी, कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर, सुपरवाइजर, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आशा वर्कर के लिए एक दिवसीय प्रशिक्षण में बतौर मुख्यातिथि व्यक्त किए।
उन्होंने प्रशिक्षकों को बताया कि भारत,ब्राजील और इंडोनेशिया में अभी भी बहुत सारे कुष्ठ रोग के मामले आ रहे हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद राजकीय मेडिकल कॉलेज से डॉ अनुज शर्मा ने विस्तार से प्रशिक्षण देते हुए बताया कि कुष्ठ रोग भी अन्य संक्रामक बीमारियों की तरह मरीज के खाँसने और छीकने से फैलता है जब कुष्ठ रोग का कीटाणु स्वस्थ व्यक्ति में प्रवेश करता है तो 5 से 10 वर्ष के बीच में उस व्यक्ति में लक्षण आने शुरू हो जाते हैं।
लक्षणों में व्यक्ति के शरीर में संवेदनहीन धब्बे आने शुरू होते हैं, व्यक्ति के शरीर की तंत्रिकाएँ नष्ट होने लगती हैं तथा बाद की अवस्था में अंग विकृति भी हो जाती है। जिला कार्यक्रम अधिकारी डॉक्टर राजेश सूद ने बताया कि इस प्रशिक्षण का उद्देश्य कुष्ठ रोग जिसे हैंसन बीमारी से भी जाना जाता है, से जुड़े भेदभाव को मिटाना, शीघ्र ही कुष्ठ रोग से ग्रसित मरीज की पहचान करके उसको इलाज पर डालना तथा अंग विकृति को रोकना और बच्चों में कुष्ठ रोग को शून्य करना है।
उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लिए कार्यक्रम में नए परिवर्तन लाकर एक्टिव केस सर्च करके उनमें अंग विकृति को रोकना है। डॉक्टर सूद ने बताया कि भारत सरकार ने 2030 तक कुष्ठ रोग को शून्य बीमारी, शून्य अंग विकृति और इस बीमारी से जुड़े कलंक और भेदभाव को शून्य पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उन्होंने आगे बताया कि प्रशिक्षकों का मुख्य कार्य मरीज के संपर्क में आने वाले परिवार जनों के लिए कुष्ठ रोग से बचाव की दवाई व मरीज के विकृति होने पर विस्तृत विश्लेषण करना है।