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भूंडा महायज्ञ / देवताओं के जयकारों से गूंजा दलगांव। ढोल, नगाड़ों और रणसिंगों की धुनों के बीच वीरवार को देवता बकरालू के मंदिर में भूंडा महायज्ञ शुरू

हिमाचलनाउ डेस्क | 3 जनवरी 2025 at 6:47 am

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भूंडा महायज्ञ वीरवार को हिमाचल प्रदेश के बकरालू मंदिर में धूमधाम से शुरू हुआ। यह महायज्ञ एक ऐतिहासिक आयोजन है, जो पिछले चार दशकों बाद हो रहा है। इस महायज्ञ में करीब एक लाख लोग स्पैल वैली में जुटने की उम्मीद है। इस धार्मिक कार्यक्रम में देवता और देवलू (भक्त) पारंपरिक नृत्य और संगीत के बीच शामिल हुए।

प्रारंभिक अनुष्ठान: ढोल-नगाड़ों की धुन पर देवताओं की आगमन

पहले दिन महायज्ञ की शुरुआत ढोल, नगाड़े और रणसिंगों की धुनों पर नाचते-गाते देवलू और देवता बकरालू के मंदिर पहुंचे। पारंपरिक वेशभूषा में खूंद (देवलू) देवताओं के साथ नृत्य करते हुए मंदिर पहुंचे। तलवारों और डंडों के साथ चलने वाले देवलू विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बने। इस अवसर पर देवता बकरालू महाराज के इतिहास में पहली बार चार दशकों बाद महायज्ञ का आयोजन हो रहा है। इससे पहले, भूंडा महायज्ञ 70 से 80 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता रहा है।

महत्वपूर्ण रस्में और अनुष्ठान

महायज्ञ के विभिन्न दिनांकों पर कई महत्वपूर्ण रस्में अदा की जाएंगी:

  • शुक्रवार (6 जनवरी): शिखा पूजन (पवित्र बालों की पूजा) और फेर रस्म (एक विशेष पारंपरिक प्रक्रिया) संपन्न होगी।
  • शनिवार (7 जनवरी): मुख्य रस्म बेड़ा निभाई जाएगी, जिसमें एक विशेष व्यक्ति मूंगी (घास) से बने रस्से पर लकड़ी की काठी पर फिसलकर एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचेगा।

इस रस्म में सूरत राम को देवताओं और देवलुओं की मौजूदगी में नौवीं बार बेड़ा रस्म निभाने का अवसर मिलेगा।

देवताओं की सहभागिता: एकजुट धार्मिक यात्रा

महायज्ञ में देवलू विभिन्न गांवों से अपने देवताओं के साथ बकरालू मंदिर पहुंचे। सबसे पहले रंटाड़ी गांव के देवता मोहरिश अपने देवलुओं के साथ दलगांव पहुंचे। इसके बाद समरकोट के पुजारली गांव से देवता महेश्वर और बछूंछ गांव से देवता बौंद्रा महायज्ञ में भाग लेने के लिए मंदिर पहुंचे।

हर देवता और उनके देवलू के हाथों में तलवारें और डंडे थे, और वे हर कदम पर पटाखे फोड़ते हुए मंदिर की ओर बढ़े। पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य करते हुए देवताओं के जयकारों के बीच देवता बकरालू के मंदिर पहुंचे।

विशेष आकर्षण: देव मिलन और तंबू व्यवस्था

भूंडा महायज्ञ के दौरान देवताओं का मिलन एक विशेष आकर्षण रहा, जहां देवता और उनके देवलू एक-दूसरे से मिलकर जयकारे के साथ अभिवादन करते रहे। देवताओं और देवलुओं के लिए बाहर तंबू लगाए गए हैं, जहां वे महायज्ञ के समाप्त होने तक विश्राम करेंगे।

रातभर का नाटियों का दौर और सुरक्षा इंतजाम

महायज्ञ में शाम होते ही लावा जलने की प्रक्रिया शुरू हो गई और देवलू तंबू के बाहर झूमते रहे। रात भर यहां नाटियों का दौर चलता रहेगा, जिसमें देवलू गीत और नृत्य में भाग लेंगे। इसके साथ ही, देवलुओं के लिए संयुक्त लंगर की व्यवस्था की गई है।

कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस हर जगह तैनात की गई है, ताकि आयोजन शांतिपूर्वक संपन्न हो सके।

भूंडा महायज्ञ का आयोजन न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन भी है। यह आयोजन सालों बाद होने के कारण लोगों में उत्साह और श्रद्धा का माहौल है।

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