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Exclusive Report By: Shailesh Saini

इस बार सिरमौर में उगा 22500 मीट्रिक टन कुफरी ज्योति आलू, देशभर की मंडियों में बनी जबरदस्त डिमांड

यहां सप्ताह भर चलती है दीपावली, नृत्य व पारंपरिक व्यंजन त्यौहार का अहम हिस्सा….

SAPNA THAKUR | 4 नवंबर 2021 at 11:40 am

HNN/ संगड़ाह

सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं त्यौहार अलग अंदाज में मनाए जाते हैं, मगर यहां सप्ताह भर चलने वाली दीपावली तथा एक माह बाद आने वाली बूढ़ी दिवाली हमेशा चर्चा में रही है। क्षेत्र में दीपावली से एक दिन पूर्व चौदश से उक्त त्यौहार शुरू होता है तथा इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज व तीज आदि नाम से सप्ताह भर चलता है।

बुधवार को मनाए जाने वाले छोटी दिवाली अथवा चौदश पर्व पर क्षेत्र मे अलकली व बिलोई आदि पारम्परिक व्यंजन बनाए गए। चौदश की रात इलाके के विभिन्न गांवों में बुड़ेछू लोक नृत्य भी होता है। दिवाली के दौरान क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बुड़ेछू लोक नृत्य होता है तथा अलग-अलग दिन अस्कली, धोरोटी, पटांडे, सीड़ो व तेलपकी आदि पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं। दीपावली के अगले रोज पोड़ोई, दूज, तीच व चौथ आदि पर ग्रेटर सिरमौर के कईं गांव में सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें से कुछ जगहों पर रामायण व महाभारत का मंचन किया जाता है।

गिरीपार के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 135 के करीब पंचायतों में दिवाली को आज भी इसी तरह पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है। क्षेत्र में कुछ दशक पहले तक बिना पटाखे चलाए प्रर्यावरण मित्र ढंग से यह उत्सव मनाया जाता था, हालांकि अब देश के अन्य हिस्सों की देखा-देखी में आतिशबाजी दीपावली हिस्सा बन गई है। विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले पारंपरिक बुड़ेछू कलाकारों द्वारा इस दौरान होकू, सिंघा वजीर, चाय गीत, नतीराम व जगदेव आदि वीर गाथाओं गायन किया जाता है।

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उक्त कलाकारों द्वारा फास्ट बीट के सिरमौरी गीतों पर बूढ़ा नृत्य भी किया जाता है। सदियों से क्षेत्र में केवल दीपावली अथवा बड़ी दिवाली तथा बूढ़ी दिवाली के दौरान ही बुड़ेछू नृत्य होता है तथा इसे बूढ़ा अथवा बुड़ियाचू नृत्य भी कहा जाता है। स्थानीय लोग बुड़ेछू दल के सदस्यों को नकद बक्शीश के अलावा घी के साथ खाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजन भी परोसते हैं तथा इस परम्परा को ठिल्ला कहा जाता है। भैया दूज पर दामाद अपनी सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बहरहाल क्षेत्र में सदियों से इस तरह दीपावली मनाने की परंपरा कायम है। एक माह बाद आने वाली अमावस्या से ग्रेटर सिरमौर कईं गांव में सप्ताह भर चलने वाली बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है तथा कुछ गांवों में इसे मशराली के नाम से भी मनाया जाता है। ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार में दीपावली के अलावा लोहड़ी, गूगा नवमी, ऋषि पंचमी व वैशाखी आदि त्यौहार भी शेष हिंदोस्तान से अलग अंदाज में मनाए जाते हैं।

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