मार्गशीर्ष पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। खासतौर पर लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
तिथि और समय
2024 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा 15 दिसंबर को मनाई जाएगी।
- पूर्णिमा तिथि का आरंभ: 14 दिसंबर, दोपहर 4:58 बजे।
- पूर्णिमा तिथि का समापन: 15 दिसंबर, दोपहर 2:31 बजे।
हिंदू धर्म में उदयातिथि का महत्व होने के कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत और पूजा 15 दिसंबर को की जाएगी।
लक्ष्मी पूजन की विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने के लिए सही विधि का पालन करना आवश्यक है।
चरणबद्ध विधि
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें:
स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। - व्रत संकल्प लें:
यदि व्रत रख रहे हैं, तो सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। - लक्ष्मी पूजन प्रारंभ करें:
धूप-दीप जलाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें। - मंत्र जप करें:
पूजा के दौरान लक्ष्मी जी और विष्णु जी के मंत्रों का जप करें। - लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें:
लक्ष्मी चालीसा का पाठ एकाग्र मन से करें। पाठ के बीच में किसी भी कारण से रुकावट नहीं होनी चाहिए। - आरती और भोग:
पाठ के बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आरती करें। फिर भोग अर्पित करके पूजा को संपन्न करें।
लाभ
- लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से धन, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का वातावरण बनता है।
लक्ष्मी चालीसा
चौपाई
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी।
सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा।
सबकी तुम ही हो अवलंबा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी।
विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी।
दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी।
कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी।
सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी।
जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता।
संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो।
चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी।
सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा।
रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा।
लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं।
सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी।
विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी।
कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई।
मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई।
पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई।
जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई।
मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि।
त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै।
ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै।
पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना।
अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै।
शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा।
ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै।
कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा।
तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही।
उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई।
लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा।
होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी।
सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं।
तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै।
संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी।
दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी।
तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में।
सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण।
कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई।
ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
दोहा
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
लक्ष्मी चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से भी देवी की कृपा प्राप्त होती है। विशेष रूप से मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर यह पाठ अत्यधिक फलदायी होता है।
निष्कर्ष
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए आदर्श समय है। सही विधि से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से जीवन में धन, सुख, और समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन को भक्ति और समर्पण के साथ मनाएं और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करें।