भारतीय बाजार भी लहूलुहान, साथ ही जानिए भारत की 5 सबसे बड़ी गिरावटें
हिमाचल नाऊ न्यूज़ मुम्बई
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अप्रत्याशित टैरिफ घोषणाओं ने सोमवार को वैश्विक शेयर बाजारों में भारी उथल-पुथल मचा दी है। गौर हो कि ट्रम्प ने चेतावनी देते हुए कहा था कि टैरिफ हटाने के बदले देशों को ‘बहुत पैसा’ चुकाना होगा। कंपनी इसे अमेरिका के लिए दवा बताया था।
हमारे WhatsApp ग्रुप से जुड़ें: Join WhatsApp Group
ट्रंप की इसी चेतवनी ने निवेशकों की चिंताएं बढ़ा दीं। जिसका असर यह हुआ कि एशियाई बाजारों में तेज गिर गया । वहीं भारतीय शेयर बाजार भी इस सुनामी से नहीं बच सका और भारी नुकसान के साथ बंद हुआ।
इस भारी गिरावट के बीच, भारतीय शेयर बाजार के इतिहास की पांच सबसे बड़ी गिरावटों पर भी नजर डालना जरूरी है:-
सुबह बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स लगभग 4000 अंकों की गिरावट के साथ 71,449.94 पर खुला और कारोबार के दौरान 71,425.01 के निचले स्तर तक गिर गया।
इसका असर यह हुआ कि यह 2226.79 अंक यानी 2.95 प्रतिशत की बड़ी गिरावट के साथ 73,137.90 पर बंद हुआ। इसी तरह, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी-50 भी 1000 अंकों से अधिक की गिरावट के साथ 21,758.40 पर खुला और दिन के कारोबार में 21,743.55 तक लुढ़क गया।
अंत में यह 742.85 अंक या 3.24 प्रतिशत की गिरावट दर्ज करते हुए 22,161.60 पर बंद हुआ। और हुआ यह कि एक ही दिन में निवेशकों के डूबे 14 लाख करोड़ से ज्यादा डूब गए।
इस भारी गिरावट ने निवेशकों को गहरा झटका दिया है। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण 14,09,225.71 करोड़ रुपये घटकर 3,89,25,660.75 करोड़ रुपये पर आ गया, जो शुक्रवार को 4,03,34,886.46 करोड़ रुपये था।
पाकिस्तान में कारोबार रोकना पड़ा
पड़ोसी देश पाकिस्तान के शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखने को मिली। कराची स्टॉक एक्सचेंज (केएसई)-100 सूचकांक में 8000 से अधिक अंकों की गिरावट के कारण एक घंटे के लिए कारोबार स्थगित कर दिया गया।
क्यों आई इतनी बड़ी गिरावट
विश्लेषकों के अनुसार, इस भारी गिरावट के मुख्य कारण ट्रम्प का टैरिफ आक्रमण:
अमेरिका द्वारा चीन के निर्यात पर 54 प्रतिशत टैरिफ लगाने और इसके जवाब में चीन द्वारा सभी अमेरिकी आयात पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाने से वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका गहरा गई ।
माना जा रहा है कि इस टैरिफ नीति से अमेरिका में महंगाई बढ़ेगी, मांग कमजोर होगी और मंदी का खतरा बढ़ जाएगा।
वैश्विक व्यापार तनाव:
वैश्विक स्तर पर बढ़ते व्यापार तनाव ने निवेशकों की धारणा को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली: वैश्विक व्यापार युद्ध के तनाव बढ़ने के बाद विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय शेयरों से दूरी बनानी शुरू कर दी है।
पिछले पांच कारोबारी सत्रों में एफआईआई शुद्ध विक्रेता रहे हैं, जिससे इस साल 15 ट्रिलियन डॉलर का आउट फ्लो हुआ है। हालांकि, इसी अवधि में घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 1.93 लाख करोड़ रुपये के शेयर खरीदे हैं, लेकिन यह बिकवाली के दबाव को कम करने में नाकाफी साबित हुआ।
भारतीय बाजार की 5 सबसे बड़ी गिरावटें
हर्षद मेहता घोटाला क्रैश (1992): 28 अप्रैल, 1992 को सेंसेक्स 570 अंक (12.7 प्रतिशत) गिरा। केतन पारेख घोटाला क्रैश (2001): मार्च 2001 में इस घोटाले के चलते सेंसेक्स 176 अंक (4.13 प्रतिशत) लुढ़का।
चुनाव झटका क्रैश (2004): 17 मई, 2004 को अप्रत्याशित चुनाव नतीजों के कारण सेंसेक्स 11.1 प्रतिशत गिरा। इस दौरान बाजार में दो बार ट्रेडिंग रोकनी पड़ी। वैश्विक वित्तीय संकट क्रैश (2008) 21 जनवरी, 2008 को वैश्विक मंदी के डर से सेंसेक्स 1408 अंक (7.4 प्रतिशत) नीचे आया।
कोविड-19 महामारी क्रैश (2020): 23 मार्च, 2020 को भारत में लॉकडाउन की घोषणा के बाद सेंसेक्स 3935 अंक (13 प्रतिशत) टूटा। अब भले ही आज की गिरावट इन ऐतिहासिक गिरावटों के प्रतिशत के लिहाज से उतनी बड़ी न हो, लेकिन वैश्विक कारकों के चलते आई इस भारी गिरावट ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है।
बरहाल अब देखना यह होगा कि वैश्विक बाजार और भारतीय अर्थव्यवस्था इस दबाव से कैसे निपटते हैं।
📢 लेटेस्ट न्यूज़
हमारे WhatsApp ग्रुप से जुड़ें
ताज़ा खबरों और अपडेट्स के लिए अभी हमारे WhatsApp ग्रुप का हिस्सा बनें!
Join WhatsApp Group