HNN/हमीरपुर
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में स्थित अवाहदेवी मंदिर दो जिलों के बीच स्थापित हुआ है। यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है और मां जालपा पिंडी रूप में विराजमान है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर के स्थान पर दो परिवार काम करते थे, एक मंडी का और एक हमीरपुर का। एक बार खेतों में जुताई करते हल एक पत्थर से टकराया तो उस पत्थर से रक्त बहने लगा।
मां ने दर्शन देकर अपने लिए एक स्थान मांगा और मंडी के लोग कहने लगे कि यह पिंडी हमें मिली है इसलिए इसे हम अपने गांव में ले जाएंगे और वहीं इसकी स्थापना करेंगे। लेकिन जब वे अवाहदेवी के पास आए तो उन्होंने वहां विश्राम करने के लिए पिंडी रखी और जब वे जाने लगे तो पिंडी वहां से उठाई नहीं गई। बुजुर्गों ने फैसला लिया कि इस पिंडी को यहीं स्थापित किया जाए और दोनों परिवारों को इसकी पूजा अर्चना की जिम्मेदारी सौंपी गई।
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कस्बे का नाम अवाहदेवी पड़ने के पीछे भी रोचक घटना है। कहते हैं यहां बहुत ही तेज हवाएं चलती थीं और पूरे हमीरपुर में ये सबसे ऊंचा स्थान है। किसी के मुख से अचानक ही निकला “वाह देवी” तब से यहां का नाम अवाहदेवी पड़ गया। समय बीतता गया और सन् 1965 के आस-पास हरियाणा के जिला अम्बाला के गांव नन्न्योला से महात्मा बाबा श्री सरवन नाथ जी आए और यहां के मनोहारी दृश्य को देख कर यहीं तपस्या करने लग गए।
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