HNN/शिमला
पहाड़ पर आपदा के 15 माह बाद भी जख्म नहीं भरे हैं। झूला पुल के सहारे जिंदगी चल रही है। विकास के नाम पर विनाशलीला जारी है। पहाड़ काटे जा रहे हैं, खनन हो रहा है, नदियों-नालों के रास्ते रोककर अवैज्ञानिक निर्माण जारी है।
सदी की भयंकर प्राकृतिक आपदा को सवा साल बीत गया, लेकिन धरातल पर बदला कुछ भी नहीं। आपदा के दौरान कुल्लू के सैंज क्षेत्र में भारी तबाही हुई थी। सात बड़े और छह छोटे पुल बह गए थे। इनमें अभी न्यूली में दो और सैंज में एक बेली ब्रिज ही बन पाया है।
कुल्लू और मंडी जिला में करीब 300 गांव अब भी आपदा प्रभावित हैं। इन गांवों के लोग रस्सी और ट्रॉलियों के सहारे नदी-नालों को पार कर रहे हैं। सरकारी मदद का इंतजार है, लेकिन अभी तक महज चार लाख रुपये ही मिले हैं। न जमीन मिली, न किराया और न राशन।
पर्यावरणविद् मदन शर्मा के अनुसार छोटे-बड़े नदी और नालों पर अधिक बिजली परियोजनाएं बनाने से परहेज करना चाहिए। भूस्खलन को रोकने के लिए जंगलों का दायरा बढ़ाना होगा। नदी-नालों के किनारे तटीकरण हो और नए घरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगना चाहिए।