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HNN/कुल्लू

कुल्लू दशहरा उत्सव में देवताओं के मुख्य कारकून तपस्वियों की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। वे देव परंपरा का पालन करते हुए देवताओं के शिविरों में बने खाने को ही ग्रहण करते हैं। बाहरी खान-पान, होटल और ढाबा में पानी व चाय तक नहीं पी सकते हैं। इस बार उत्सव में जिलाभर से लगभग 300 से ज्यादा देवी-देवता आए हैं और करीब 3,000 कारकून देव नियमों का पालन कर रहे हैं।

हर देवता के साथ 10 से 12 मुख्य कारकून होते हैं जो देव नियमों से बंधे रहते हैं। उन्हें रात-दिन अपने अधिष्ठाता की सेवा करनी पड़ती है। देव समाज के जानकारों के अनुसार दशहरा में देवताओं के मुख्य कारकूनों को देव नियमों का पालन करना एक बड़ी चुनौती है। उनके लिए खाने-पीने से लेकर रहने के लिए कई बंदिशों का सामना करना पड़ता है।

कुल्लू दशहरा में लोग देवी-देवताओं के आगे मांगी मन्नत को पूरा होने पर धाम दे रहे हैं। जिलेभर से आए 300 से अधिक देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था है। लोग दशहरा मैदान में बने अस्थायी शिविरों से देवताओं को अपने घर ले जो रहे हैं। देव समाज के जानकारों के अनुसार हर दिन 50 से 60 फीसदी देवताओं के अस्थायी शिविरों में लोगों की ओर से मन्नत पूरी होने पर धाम दी जा रही है।

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