मंडी के बाद दूसरी हॉट सीट बन गई जुब्बल-कोटखाई
HNN / नाहन
प्रदेश में उपचुनाव का घटनाक्रम 2022 में भाजपा के लिए शुभ संकेत देता नजर नहीं आ रहा है। तेजी से बदले हालातों और गुटबाजी के साथ भीतर घाती कहीं ना कहीं राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रति नाराजगी के बड़े संकेत दे रहा है। प्रदेश में भाजपा जो पकी पकाई खीर मिली थी उसमें अब कंकर पड़ने शुरू हो चुके हैं। असल में प्रदेश की राजनीति देश की राजनीति से बहुत हटकर है जिसको संभवत जयराम ठाकुर तो भली-भांति समझते होंगे, मगर कुछ लोग केंद्र में जाकर प्रदेश की जनता के जज्बातों को भूल चुके हैं। चेतन ब्रागटा के साथ ना केवल सिंपैथी बल्कि डबल सिंपैथी हो गई है।
जुब्बल कोटखाई का उपचुनाव अब भाजपा वर्सेस कांग्रेस ना होकर चेतन वर्सेस रोहित हो गया है। बड़ी बात तो यह है कि भाजपा संगठन के द्वारा जिस चेहरे पर दांव खेला गया है वह पंचायती राज चुनाव में पहले, दूसरे, तीसरे नहीं बल्कि छठे नंबर पर रहा है। चेतन की सादगी और संगठन के लिए जिस प्रकार उसने जी जान लगा कर काम किया था। यही नहीं एक मजबूत टीम भी खड़ी की थी उस आस्था पर बड़ा प्रहार होने के बाद कार्यकर्ता भाजपा की सोच पर सोच में पड़ गया है। एक बात तो सभी जानते हैं कि भाजपा में कार्यकर्ताओं की वजह से एक बड़ा अनुशासन बना रहता है।
मगर अत्यधिक मीटिंग और जिम्मेदारियां वह बखूबी निभाई जाती है और उसके बाद कमोबेश ऐसी स्थिति पैदा हो जाए तो कार्यकर्ता का मनोबल धराशाई हो जाता है। लिहाजा कहा जा सकता है कि उपरी हिमाचल में भाजपा के लिए सेब अब कड़वा हो चुका है। मंडी जहां इस समय प्रदेश की हॉट सीट थी मगर अब जुब्बल कोटखाई ऊपरी हिमाचल के लिए बड़ी हॉट सीट बन गई है। बदले समीकरणों के साथ रोहित ठाकुर खुद इस समय संशय में है कि आखिर भाजपा को तो घेरा जा सकता था, मगर जहां जनता के दिल में सिंपैथी जाग गई हो उसकी कोई काट नहीं है।
इसको दूसरी बड़ी हॉट सीट इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि मंडी लोकसभा सीट पर सेब बहुल क्षेत्र ज्यादा पड़ता है और सेब बागवानों के लिए चेतन के पिता स्वर्गीय नरेंद्र ब्रागटा स्टोक्स के बाद दूसरे सम्मानित व्यक्ति थे। ऐसे में अब भाजपा ने जो परिवारवाद का हवाला देकर मंडी के लिए चेतन की बलि दी है वह खुद इन पर भारी पड़ गई है। एन वक्त पर भाजपा ने जिस तरह से ब्रागटा परिवार को हाशिए पर रखा है उसको लेकर रोहित ठाकुर के खेमे में भी बड़ी हलचल है। माना तो यह भी जा रहा है कि इस क्षेत्र की जनता यदि अपनी पर आ जाए तो बड़े बड़ों को पटकनी भी देती है।
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साथ लगते विधानसभा क्षेत्र से सिंघा विधायक है। पैसे की संपन्नता के साथ यह राजपूत वर्ग, ब्राह्मण वर्ग नाक की लड़ाई ज्यादा लड़ता है। अब यहां पर चुनाव भाजपा वर्सेस कांग्रेस ना रहकर यहां की जनता के लिए नाक की लड़ाई हो गई है और जब नाक की लड़ाई आ जाए तो परिणाम ना केवल फिलहाल बल्कि आने वाले वक्त के लिए भी घातक रहते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि जो खेल यहां एक कर्मठ कार्यकर्ता के लिए वह भी आश्वासन मिलने के बावजूद खेला गया है उसका खेला परिणाम 2022 के बाद भी नजर आएगा।