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HNN/नाहन

नाहन : उत्तराखंड के राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से सिरमौर पहुंचने वाले हाथियों से लोगों और फसलों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग अलर्ट मोड पर है। विभाग की ओर से लोगों को जागरूक करने के साथ साथ अन्य तरह के व्यापक इंतजाम भी किए जा रहे हैं। ताकि हाथियों से सुरक्षा और बचाव हो सके।


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अब वन विभाग के निमंत्रण पर कर्नाटक से वन्य प्राणी चिकित्सक एवं हाथियों के एक्सपर्ट डा. रूद्रा सिरमौर पहुंचे हैं, जिन्होंने पांवटा साहिब व नाहन के हाथी प्रभावित इलाकों में ‘‘चिल्ली स्मोक’’ का फार्मूला लोगों को बताया। डा. रूद्रा ने पिछले 30-35 वर्षों से नेपाल, भूटान और आसाम आदि जगहों पर हाथियों पर काम किया है। काफी वर्षों तक उन्होंने हाथियों का ईलाज किया। वे एक्सपर्ट के तौर पर जाने जाते हैं।


वन विभाग की टीम के साथ डा. रूद्रा ने पहले पांवटा साहिब और फिर नाहन वन मंडल के कोलर, कटासन, बड़ाबन, शंभूवाला, बोहलियों आदि इलाकों में जाकर लोगों को न केवल हाथियों को लेकर जागरूक किया, बल्कि चिल्ली स्मोक प्रक्रिया से लोगों के साथ-साथ वन कर्मियों को भी अवगत करवाया।


बता दें कि जिला सिरमौर में हाथियों की कदमताल काफी बढ़ी है, लेकिन चिंता तब ज्यादा बढ़ गई जब पिछले दो वर्षों में हाथियों ने अलग-अलग घटनाओं में एक महिला सहित दो लोगों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इन दोनों ही घटनाओं के बाद वन विभाग लगातार सुरक्षा के पुख्ता इंतजार करने में जुटा हुआ है, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न घटें।
क्या है ‘‘चिल्ली स्मोक’’ का ये फार्मूला


डा. रूद्रा ने प्रभावित इलाकों में लोगों को चिल्ली स्मोक (मिर्ची का धुआं) की तकनीक बताई. उन्होंने बताया कि एक टीन के कनस्तर का एक हिस्सा काटकर उसमें गोबर के कुछ उपले रखें। थोड़े से डीजल का प्रयोग कर उपलों को आग लगाएं। धुएं के बीच 10 मिनट बाद उपलों के ऊपर 200 ग्राम लाल सूखी मिर्ची डाल दें। जैसे-जैसे यह लाल मिर्ची उपलों के बीच जलेगी, वैसे-वैसे चारों दिशाओं में यह धुआं फैलेगा।


चिल्ली स्मोक की इस गंद से हाथी रिहायशी इलाकों का रूख नहीं करेंगे और जंगल में ही रहेंगे, चूंकि हाथियों के सूंघने की क्षमता काफी ज्यादा होती है। इसके अलावा लकड़ी के डंडे पर टाट या बोरी की तीन परत बनाकर उस पर भी मिर्ची का प्रयोग किया जा सकता है। इन्हें ऐसे स्थानों पर गाड़ दें, जहां पर हाथियों की आमद अधिक रहती है। इन तकनीकों से हाथियों का आवागमन रिहायशी क्षेत्रों की ओर नहीं होगा।


डा. रूद्रा ने बताया कि चिल्ली स्मोक की यह प्रक्रिया आसाम, कर्नाटका, अफ्रीका आदि जहां-जहां हाथी प्रभावित इलाके हैं, वहां कामयाब रही है। हाथियों को आबादी में आने से रोकने के लिए यह प्रक्रिया काफी कारगर साबित हो रही है।


बता दें कि इससे पहले वन विभाग हाथी प्रभावित इलाकों में एनाइर सिस्टम भी स्थापित कर चुका है, जो कारगर भी साबित हो रहा है। विभाग की मानें तो जहां-जहां यह सिस्टम स्थापित किए गए हैं, फिलहाल उन इलाकों में हाथियों की मूवमेंट नहीं देखी गई है। यानी कहा जा सकता है कि वन विभाग लोगों को जागरूक करने के साथ साथ हर उस तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहा है, जिससे हाथियों की आबादी वाले इलाकों में मूवमेंट रोकी जा सके।

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