शोक के चलते देवता जुन्गा की पूजा पर लगे प्रतिबंध को मिली छूट- रामकृष्ण मेहता

HNN/ शिमला

क्योंथल क्षेत्र में शोक के चलते देवता जुन्गा के 22 टीका मंदिरों में पूजा पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया गया है। जिसके चलते आगामी 14 नवंबर को देवठन अर्थात प्रबोधनी एकादशी पर्व पर देवता जुन्गा की पारंपरिक पूजा की जा सकेगी। यह निर्णय देवता जुन्गा समिति की विशेष बैठक में लिया गया है। जिसकी पुष्टि देवता जुन्गा के प्राचीन मंदिर पुजारली के प्रमुख पुजारी रामकृष्ण मेहता ने की है। उन्होने बताया कि बीते माह तत्कालीन क्योंथल रियासत के राजा वीर विक्रम सेन के निधन के कारण समूचे क्षेत्र में परंपरा के अनुसार एक वर्ष का शोक रखा गया है।

जिसके चलते देवता की पूजा व अन्य देवसमाज संबधित कार्य वर्जित किए गए हैं। बता दें कि दशहरा और दिवाली पर्व पर समूचे क्योंथल क्षेत्र के 22टीका मंदिरों में देवताओं की कोई पूजा नहीं की गई। पुजारी रामकृष्ण मेहता ने बताया कि बीते कल राजमाता क्योंथल की अध्यक्षता में जुन्गा में एक विशेष बैठक रखी गई जिसमें निर्णय लिया गया कि क्योंथल क्षेत्र के सभी देवता जुन्गा के मंदिरों में पहले की भांति 12 सक्रांतियों को पूजा होगी। परंतु आगामी वर्ष अर्थात राजा का वार्षिक श्राद होने के उपंरात नए राजा का राजतिलक होने तक देवता अपने मंदिरों से बाहर नहीं आएंगे और अपने क्षेत्र का दौरा भी नहीं कर सकेगें।

देवता पूजा के दौरान ही नगाढ़े को बजाने की अनुमति होगी। उन्होने क्षेत्र के सभी देव कारदारों से आग्रह किया है वह देवठन पर देव जुन्गा के 22 टीका मंदिरों में परंपरा के अनुसार पूजा कर सकते हैं। रामकृष्ण मेहता ने बताया कि समूची क्योंथल रियासत में कालांतर से ही देवता जुन्गा के 22 टीका अर्थात देवता की पूजा हर गांव में की जाती है। सभी 22 देवता क्योंथल रियासत के राजा के वंशज माने जाते हैं जिस कारण इस रियासत में राजा का स्थान देवता से ऊपर माना जाता है और इस रियासत के लोग राजा को अपना चौथा इष्ट अर्थात अपना प्रमुख देवता मानते हैं।

देव संबधी कार्यों में राजा का निर्णय आज भी सर्वोपरि माना जाता है। मेहता ने बताया कि बीते 13 दिसंबर 2002 को क्योंथल रियासत के तत्कालीन राजा हितेन्द्र सेन के निधन पर वीर विक्रम सेन को उतराधिकारी बनाया गया था। इस दौरान एक वर्ष का शोक रखा गया था परंतु 29 जून, 2003 को राजा वीर विक्रम द्वारा क्षेत्र के आराध्य देव जुन्गा की पूजा की अनुमति प्रदान की गई थी और राजा के इसी निर्णय को आधार मानकर इस बार भी देव पूजा का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया है। बैठक में देवता जुन्गा के भंडारी बंसीधर, देवता सरगाई के कारदार दिनेश शर्मा, कथेश्वर देवता के कारदार राम स्वरूप शर्मा उर्फ सयाणा, बारू शर्मा सहित अन्य कारदारों ने भाग लिया।


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