नमक-सोना विनिमय से भेड़-बकरियों के रेवड़ों तक की 300 साल पुरानी दास्तान
शिमला रामपुर बुशहर
हिमालय की गोद में, सतलुज नदी के तट पर बसा रामपुर बुशहर प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले का आयोजन कर सदियों पुरानी एक ऐसी व्यापारिक गाथा को जीवंत रखता है, जिसने इस क्षेत्र के भूगोल और इतिहास को आकार दिया है।
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एशिया के सबसे प्राचीन व्यापारिक संगमों में से एक, लवी मेला, केवल वस्तुओं का लेन-देन नहीं, बल्कि भीतरी हिमालय और तिब्बत के बीच पनपे एक विशिष्ट सभ्यतागत आदान-प्रदान का जीवंत प्रमाण है।
लवी मेले का इतिहास बुशहर रियासत के शक्तिशाली शासक राजा केहर सिंह (1639-1696 ई.) द्वारा तिब्बत के साथ की गई एक ऐतिहासिक व्यापारिक संधि में निहित है।
इस संधि ने रामपुर को भारत और तिब्बत के बीच एक निर्बाध, कर-मुक्त व्यापारिक गलियारा बना दिया था। पुराने तिब्बती व्यापारिक अभिलेखों के अनुसार, इस विरासत की सबसे असाधारण जानकारी यह है कि एक समय तिब्बत सीमा से सटे क्षेत्रों के व्यापारी यहाँ से अत्यंत मूल्यवान वस्तु नमक लेकर जाते थे, और बदले में सोना लेकर आते थे।

यह विनिमय दर्शाता है कि दुर्गम हिमालयी क्षेत्रों में नमक कितना बहुमूल्य था, जिसकी कीमत शुद्ध धातु के साथ आँकी जाती थी। इस आदान-प्रदान ने बुशहर को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया और रियासत की ताकत दूर-दूर तक फैली।मेले की व्यापकता केवल खनिज और ऊनी उत्पादों तक ही सीमित नहीं थी।
यह मेला पशुधन व्यापार का भी एक विशाल केंद्र था। व्यापारी यहाँ भेड़-बकरियों की खरीद-फरोख्त भी किया करते थे। बड़े-बड़े रेवड़ (झुंड) पहाड़ की घाटियों से उतरकर रामपुर आया करते थे, जहाँ उनका व्यापार होता था।

हालांकि, आधुनिक परिवहन और नियमों के कारण यह पारंपरिक पशुधन व्यापार अब धीरे-धीरे बंद हो गया है। इसके अलावा, चामुर्थी नस्ल के घोड़े, जिन्हें ‘पहाड़ का जहाज’ कहा जाता था, अपनी सहनशक्ति के कारण दुर्गम यात्राओं के लिए मेले में विशेष आकर्षण का केंद्र होते थे।

आज लवी मेले का प्राथमिक उद्देश्य सदियों पुरानी इस व्यापारिक विरासत को सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से पोषित करना है। हालांकि 1962 के बाद तिब्बत से व्यापार बंद हो गया,
यह मेला अभी भी किन्नौर, लाहौल-स्पीति और कुल्लू के व्यापारियों के लिए चिलगोजे, काला जीरा, शॉल और पट्टू के करोड़ों रुपये के कारोबार का केंद्र बना हुआ है। व्यापार के अतिरिक्त,
यह मेला बुशहर और किन्नौर की सांस्कृतिक विरासत का भव्य प्रदर्शन मंच है, जहाँ पारंपरिक वेशभूषा, लोक संगीत और ‘नाटी’ नृत्य के माध्यम से स्थानीय पहचान को जीवित रखा जाता है।
इस प्रकार, लवी मेला एक बहुआयामी आयोजन है जो अतीत के नमक-सोना व्यापार से लेकर पशुधन की खरीद-फरोख्त तक, इस क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक इतिहास को बयाँ करता है। बड़ी बात तो एक यह है कि यहां जो नमक आया करता था वह मंडी के द्रंग की खानों से आया करता था।
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