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पाश्चात्य संस्कृति पर भारी पड़ रही है हिमाचली नाटियां

Published ByPARUL Date Nov 14, 2024

Himachalnow/श्री रेणुकाजी


हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर, नाटी, पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अपना आकर्षण और जादू बनाए हुए है। रेणुकाजी मेले में आयोजित सांस्कृतिक संध्याओं में नाटी के प्रति दर्शकों का उत्साह देखा गया, जहां बाहरी कलाकार फीके पड़ गए।

हिमाचल के सिरमौर, शिमला, कुल्लू, मंडी और सोलन जिलों में नाटी की लोकप्रियता बनी हुई है। इस लोक नृत्य ने देश और दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित विद्यानंद सरैक और नाटी किंग कुलदीप शर्मा जैसे कलाकारों ने नाटी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किया है।

हालांकि, हिमाचल के नाटी गायकों को अपने प्रदेश में उपेक्षित और कम मानदेय मिलने की समस्या है। लोक कलाकार दिनेश शर्मा ने स्थानीय कलाकारों की अनदेखी का मुद्दा उठाया है।

इसके बावजूद, नाटी का आकर्षण बना हुआ है। जर्मन, थाईलैंड, जापान, हंगरी, मिस्र, आयरलैंड और यूरोप के कई देशों में नाटी लोक नृत्य पेश किया जा चुका है। चुड़ेश्वर सांस्कृतिक दल जैसे समूहों ने नाटी में फिल्मी रीमिक्स और अस्थानीय पोशाक का विरोध किया है।

नाटी ने हिमाचल प्रदेश को एक सूत्र में बांधते हुए उत्तराखंड और अन्य पड़ोसी राज्यों में भी अपनी पहचान बनाई है। यह लोक नृत्य हिमाचल की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पीढ़ियों से संरक्षित है।

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