आरबीआई ने दरों में 0.25% की कटौती कर 5.25% किया; ग्राहकों को बड़ी बचत, सेंसेक्स नई ऊंचाई पर
दिल्ली
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आम जनता और अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत देते हुए एक बार फिर ब्याज दरों में कटौती की है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की शुक्रवार को समाप्त हुई तीन दिवसीय द्विमासिक बैठक में सर्वसम्मति से रेपो दर में तत्काल प्रभाव से 0.25 प्रतिशत की कटौती का फैसला लिया गया।
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इस कटौती के बाद रेपो रेट अब 5.25 प्रतिशत पर आ गया है। यह इस साल आरबीआई द्वारा की गई लगातार चौथी कटौती है, जिससे कुल कटौती 1.25 फीसदी हो गई है।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कटौती की घोषणा करते हुए बताया कि स्टैंडिंग डिपोजिट फैसिलिटी रेट अब पाँच प्रतिशत और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी रेट तथा बैंक रेट 5.50 प्रतिशत हो गए हैं।
इस फैसले से बैंकों को सस्ता कर्ज मिलेगा, जिसका फायदा उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाना होगा।लोन होंगे सस्ते, ईएमआई पर सीधा असररेपो रेट में कटौती का सीधा और सकारात्मक असर होम, ऑटो और पर्सनल लोन की दरों पर पड़ेगा। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि लोन की दरें 0.25 फीसदी तक सस्ती हो सकती हैं, जिससे ग्राहकों की मासिक किस्तें (ईएमआई) घट जाएंगी।
उदाहरण के लिए, इस ताजा कटौती के बाद 20 लाख रुपए के 20 साल के लोन पर ईएमआई में 310 रुपए तक की बचत होगी, जबकि 30 लाख रुपए के लोन पर यह बचत 465 रुपए तक पहुँच सकती है। यह राहत नए और मौजूदा, दोनों तरह के ग्राहकों को मिलेगी।
बाजार ने मनाया जश्न
सेंसेक्स-निफ्टी रिकॉर्ड परआरबीआई के इस कदम ने बाजार में उत्साह भर दिया। ब्याज दरों में कटौती से बाजार में तरलता (लिक्विडिटी) बढ़ेगी और निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। इस घोषणा के बाद शेयर बाजार में ज़बरदस्त उछाल दर्ज किया गया। बीएसई का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी दोनों ही नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गए। बैंकिंग, रियल्टी और ऑटो सेक्टर के शेयरों ने बाज़ार की अगुवाई की, क्योंकि ये सेक्टर ब्याज दर संवेदनशील होते हैं और इन्हें सीधे तौर पर लाभ होता है।
यह बाज़ार का संकेत है कि वह आरबीआई के इस रुख को आर्थिक विकास के लिए सकारात्मक मान रहा है।यह एक सामान्य प्रश्न है कि जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) तुरंत रेपो रेट घटाता है, तो वाणिज्यिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए होम लोन या अन्य लोन की दरों में तत्काल कटौती क्यों नहीं करते?
आरबीआई द्वारा दरें कम करने के बावजूद, ग्राहकों को यह फायदा मिलने में अक्सर कुछ हफ्तों से लेकर महीनों तक का समय लग जाता है, जिसे ‘ट्रांसमिशन गैप’ कहा जाता है।इसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण काम करते हैं:
1. फंड की लागत (Cost of Funds): बैंकों की फंडिंग का एक बड़ा हिस्सा फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) और सेविंग्स अकाउंट से आता है, न कि केवल आरबीआई से लिए गए लोन से। एफडी और सेविंग्स खातों की दरों को बैंक तुरंत नहीं बदल सकते, क्योंकि ये दरें एक निश्चित अवधि (एफडी के मामले में) के लिए तय होती हैं।
जब तक बैंक अपनी पुरानी, महंगी फंडिंग को नई, सस्ती फंडिंग से रिप्लेस नहीं कर देते, तब तक उनकी कुल लागत अधिक बनी रहती है।
2. बाहरी बेंचमार्किंग का प्रभाव: हालांकि आरबीआई ने अधिकांश नए रिटेल लोन को बाहरी बेंचमार्क (जैसे रेपो रेट) से जोड़ने का निर्देश दिया है, लेकिन पुराने लोन अभी भी आंतरिक बेंचमार्क जैसे MCLR (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट) पर आधारित होते हैं। MCLR की गणना में बैंक अपनी फंड की औसत लागत को ध्यान में रखते हैं। इसलिए, रेपो रेट में बदलाव का पूरा असर MCLR में आने में समय लगता है।बैंकों द्वारा ब्याज दरों में कटौती का निर्णय उनकी अपनी आंतरिक तरलता की स्थिति और बाजार में प्रतिस्पर्धा पर भी निर्भर करता है। आरबीआई बार-बार बैंकों से इस ट्रांसमिशन गैप को कम करने का आग्रह करता रहा है, ताकि मौद्रिक नीति का लाभ आम जनता तक तेज़ी से पहुँच सके।
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