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ऐतिहासिक क्षण के लिए सिरमौर तैयार, उत्तराखंड से पैदल चलकर हिमाचल की ओर बढ़ रहे न्याय के देवता चालदा महासू

हिमांचलनाउ डेस्क नाहन | 11 दिसंबर 2025 at 8:11 pm

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सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र पहली बार चालदा महासू महाराज के आगमन से रोमांचित है। 70 किमी लंबी पैदल यात्रा के बाद देवता 13 दिसंबर को सीमा में प्रवेश करेंगे और 14 दिसंबर को पश्मी मंदिर में विराजमान होंगे।

नाहन

13 दिसंबर को हिमाचल में देवता का प्रवेश, 14 को पश्मी मंदिर में विराजमान
ऐतिहासिक क्षण के लिए सिरमौर तैयार: उत्तराखंड से पैदल चलकर हिमाचल की ओर बढ़ रहे न्याय के देवता चालदा महासू
13 दिसंबर को हिमाचल की सीमा में करेंगे प्रवेश, 14 को पश्मी मंदिर में होंगे विराजमान, उत्सव जैसा माहौल
हिमाचल प्रदेश का शिलाई विधानसभा क्षेत्र इस दिसंबर माह में एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक धार्मिक घटना का साक्षी बनने जा रहा है। उत्तराखंड और हिमाचल के लोगों के आराध्य देव एवं कुल देवता छत्रधारी चालदा महासू महाराज पहली बार उत्तराखंड के जौनसार इलाके से सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में पधार रहे हैं।

यह देव यात्रा इसलिए भी विशेष है क्योंकि चालदा महासू महाराज उत्तराखंड के दसऊ से हिमाचल के पश्मी गांव तक पहली बार टौंस नदी पार कर 70 किलोमीटर की लंबी पैदल यात्रा कर रहे हैं। देवता 13 दिसंबर को हिमाचल की सीमा पर मीनस पुल क्रॉस करने के बाद द्राबिल गांव में प्रवेश कर यहां रात्रि ठहराव करेंगे और 14 दिसंबर को पश्मी के नवनिर्मित मंदिर में विधिवत रूप से विराजमान होंगे।

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नवनिर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार 2 करोड़ रुपये से पूरा
शिलाई क्षेत्र के लोगों ने महासू महाराज के स्वागत में पश्मी गांव में करीब 2 करोड़ रुपये की लागत से महासू मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पूरा करवाया है। इस महाकार्य में कारबारी पश्मी गांव के 45 परिवारों और गासान गांव के 15 परिवारों का विशेष योगदान रहा है।
जितने वर्षों तक चालदा महासू महाराज पश्मी में प्रवास करेंगे, उस अवधि के लिए देव कार्य और भंडारे के आयोजन हेतु श्री महासू महाराज कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी में दिनेश चौहान को बजीर और रघुवीर सिंह को भंडारी नियुक्त किया गया है, जबकि मंदिर में पूजा-पाठ की जिम्मेदारी पंडित आत्माराम शर्मा को सौंपी गई है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा एक माह पूर्व हो चुकी है, लेकिन इसके कपाट अब 14 दिसंबर को महाराज के पहुंचने पर ही खुलेंगे।

श्रद्धालुओं के लिए लगातार भंडारा, गांव में उत्सव जैसा माहौल
बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर कमेटी द्वारा लगातार भंडारे का आयोजन किया जाएगा। प्रदेशभर से लोग भंडारे के लिए राशन और सामग्री दान कर रहे हैं।
कारबारी पश्मी और गासन के ग्रामीण प्रतिमाह ‘मेड’ (मंथली कलेक्शन) एकत्रित करते हैं, जिससे भविष्य के देव कार्य और महोत्सव सम्पन्न होते रहेंगे।
महाराज के प्रवास के दौरान पश्मी गांव में अगले कई वर्षों तक बिशु, दीपावली, बूढ़ी दिवाली और बसंत पंचमी जैसे प्रमुख त्योहारों पर विशेष आयोजन होंगे, जिनमें सिरमौर और उत्तराखंड के हजारों लोग भाग लेंगे।

देव-चिन्ह (घांडुवा) — पांच साल पहले ही आया था संकेत
इस अद्भुत धार्मिक यात्रा की पृष्ठभूमि पांच वर्ष पहले तैयार हो चुकी थी। पश्मी गांव में अचानक एक भारी-भरकम बकरा (घांडुवा) आया, जिसे ग्रामीणों ने सामान्य पशु समझा।
दो वर्ष बाद देव वक्ता द्वारा पुष्टि हुई कि यह बकरा वास्तव में चालदा महासू महाराज का “देवदूत” है, जो देवता के आगमन से वर्षों पहले संकेत देता है।
पहचान होने के बाद बकरे का स्वभाव शांत और सहज हो गया और अब इसे देव प्रतीक के रूप में सम्मान दिया जाता है।

कौन हैं चालदा महासू?
छत्रधारी चालदा महासू महाराज जौनसार-बावर जनजाति के न्याय के देवता माने जाते हैं। चार महासू देवताओं में से चालदा महासू एकमात्र ऐसे देवता हैं जो स्थायी रूप से एक ही स्थान पर नहीं रहते और लगातार यात्राएं करते हैं। इनका प्राचीन मंदिर उत्तराखंड के जौनसार-बावर में स्थित है।

13 दिसंबर को टौंस नदी पार करने का ऐतिहासिक दृश्य
मंदिर समिति सदस्यों ने बताया कि देवता 13 दिसंबर को टौंस नदी पार कर हिमाचल में प्रवेश करेंगे—यह दृश्य सिरमौर पहली बार देखेगा।
इसके बाद 13 को द्राबिल गांव में विश्राम और 14 को अंतिम पड़ाव पश्मी मंदिर होगा।
पश्मी गांव में इस समय दीपों, ध्वजों और सजावट के साथ उत्सव जैसा माहौल है। ग्रामीणों का मानना है कि यह केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक सौभाग्य है जो सदियों बाद मिला है।

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