अधिकारी की ईमानदारी भी हुई पुष्ट, कालाआम के उद्योगपति की दुर्भावना का शिकार हुए थे सहायक ड्रग कंट्रोलर
हिमाचल नाऊ न्यूज़ दिल्ली/चंडीगढ़ कालाआम
हिमाचल प्रदेश के काला आम स्थित एक फार्मा उद्योगपति द्वारा कोमल खन्ना और विनय अग्रवाल सहित अन्य पर लगाए गए गंभीर आरोप सुप्रीम कोर्ट में पूरी तरह से बेबुनियाद साबित हुए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें CBI जांच के निर्देश दिए गए थे। शीर्ष अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि हाईकोर्ट को रूटीन तरीके से CBI जांच के आदेश नहीं देने चाहिए।
इस महत्वपूर्ण फैसले ने न केवल कोमल खन्ना और विनय अग्रवाल को राहत दी है, बल्कि हिमाचल प्रदेश ड्रग विभाग के एक बड़े और ईमानदार अधिकारी पर लगाए गए बेबुनियाद आरोपों की भी पोल खोल दी है, जो अब इस पूरे प्रकरण में बेदाग साबित हुए हैं।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि हाईकोर्ट केवल उन्हीं मामलों में CBI जांच का आदेश दे, जहां प्रथम दृष्टया ऐसे ठोस तथ्य मौजूद हों जो एजेंसी द्वारा जांच की मांग करते हों।
अदालत ने कहा कि बिना किसी निश्चित निष्कर्ष के अस्पष्ट आरोपों के आधार पर CBI जैसी एजेंसी को सक्रिय करना उचित नहीं है।यह पूरा मामला पंचकूला में अक्टूबर 2022 में दर्ज एक FIR से संबंधित है, जिसमें शिकायतकर्ता (काला आम का फार्मा उद्योगपति) ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के एक महानिरीक्षक (IG) के रूप में खुद को पेश किया और उसे धमकाकर 1.49 करोड़ रुपये अपने खाते में ट्रांसफर करने के लिए कहा।
इसी शिकायत में फार्मा उद्योगपति ने कोमल खन्ना और विनय अग्रवाल सहित ड्रग विभाग के एक बड़े अधिकारी पर भी मिलीभगत के आरोप लगाए थे।विनय अग्रवाल और डॉ. कमल खन्ना द्वारा इस मामले में याचिका लगाई गई थी।
शिकायतकर्ता ने राज्य पुलिस से जांच CBI को स्थानांतरित करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली थी, जिसके बाद याचिकाकर्ताओं (विनय अग्रवाल और डॉ. कमल खन्ना) ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल के अपने फैसले में हाईकोर्ट में दायर याचिका में लगाए गए आरोपों को “अस्पष्ट और निराधार” करार दिया। पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि याचिकाकर्ता अपीलकर्ता से परिचित थे या वे मामले में किसी भी तरह से शामिल थे।
अदालत ने अपने पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि CBI जांच का आदेश रूटीन तरीके से या केवल इसलिए नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि आरोप स्थानीय पुलिस या किसी विशेष अधिकारी के खिलाफ हैं।
इस अपील को स्वीकार करते हुए, पीठ ने हाईकोर्ट के CBI जांच के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल विनय अग्रवाल और डॉ. कमल खन्ना को राहत दिलाई है, बल्कि हिमाचल प्रदेश ड्रग विभाग के उस बड़े अधिकारी की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को भी मजबूती से स्थापित किया है, जिसे इस षड्यंत्र में घसीटने की कोशिश की गई थी।
आखिरकार, ईमानदारी की जीत हुई है और ड्रग विभाग के अधिकारी पर लगे हुए आरोप भी इस निर्णय के बाद बेदाग साबित हुए हैं, जिन्होंने इस दौरान काफी परेशानी का सामना किया था। गौरतलब है कि काला आम का यह फार्मा उद्योग संचालक पहले भी कई विवादों में रहा है।
इस ताजा घटनाक्रम ने एक बार फिर उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल न्याय की जीत है बल्कि उन सभी ईमानदार अधिकारियों के लिए एक सबक है जो दुर्भावनापूर्ण आरोपों का सामना करते हैं। यह स्पष्ट संदेश है कि सत्य की हमेशा जीत होती है।
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